आयुष दर्पण

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जानें कौन है चंद्रमा जैसे गुणों से युक्त आयुर्वेदिक औषधि

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आयुर्वेद में अनेक ऐसे योग हैं जो केवल एकल औषधि के रूप में विभिन्न रोगों में प्रयुक्त किये जाते रहे हैं।चिकित्सा में लीन चिकित्सकों में से शायद ही कोई होगा जिसने इसका प्रयोग न किया हो,सिद्ध योग संग्रह में वर्णितचन्द्रप्रभावटी’ नाम से प्रचलित यह योग आयुर्वेद चिकित्सकों का अत्यंत प्रिय योग है,आइये आज हम आपका परिचय इस अत्यंत ही गुणी योग से कराते हैं !
कचूर,वचा,नागरमोथा,चिरायता,गिलोय,देवदारु,हल्दी,अतीस,पीपलामूल,चित्रकमूल की क्षाल,धनिया,बड़ी हरड,आंवला,चव्य,वायविडंग,गजपीपल,छोटी पीपल,सौंठ,काली मिर्च,स्वर्णमाक्षिक भस्म,सज्जीक्षार,यवक्षार,सैंधा नमक,सौञ्चरनमक,सांभरनमक,छोटी इलायची के बीज,कबाबचीनी,गोखरू,और श्वेतचन्दन प्रत्येक को 3ग्राम की मात्रा में लेकर इसमें निशोथ,दंतीमूल,तेजपत्र,दालचीनी,बड़ी इलायची,वंशलोचन,प्रत्येक 12 ग्राम,लौह भस्म 25 ग्राम ,मिश्री 50ग्राम,शुद्ध शिलाजीत एवं शुद्ध गुगुलू 100-100 ग्राम।
सबसे पहले गुगुल को साफ़ कर इमाम् दस्ते में कूट लेते हैं जब यह थोड़ा मुलायम हो जाय,तब इसमें शिलाजीत और अन्य भस्में तथा अन्य द्रव्यों का कपडछान मिलाकर इसे गिलोय स्वरस में तीन दिन तक मर्दन करें,अब इसकी 500-500 मिलीग्राम की गोलियां बनाकर रख लें ।मात्रा में आंशिक परिवर्तन की गुंजायश है।
इस योग को दूध,गुडूची के काढ़े,हल्दी के स्वरस,बेल के पत्ते के रस या शहद से प्रयोग कराया जा सकता है। यह मूत्र एवं वीर्य विकृतियों के साथ बल को बढाने वाली प्रसिद्ध औषधि है।यह एक ऐसी औषधि है जिसका प्रयोग श्वेतप्रदर,अर्श,कमर दर्द,जननेन्द्रिय विकार,प्रमेह आदि में चमत्कारिक प्रभाव दर्शाता है। यह योग स्त्रियों में गर्भाशय की विकृति,भूख नहीं लगना,कब्ज,लिगेंद्रिय से सम्बंधित समस्याओं,पेशाब का रुकना आदि में भी प्रभावी औषधि है।

*इस योग का प्रयोग हमेशा चिकित्सक के परामर्श से  लेना उचित है!

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