आयुष दर्पण

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हिमालय क्षेत्र में छ: से दस हजार फीट की उंचाई पर पाई जाने वाली वनस्पति, जिसे लोग किल्मोड़ा के नाम से जानते हैं,इसे दारुहरिद्रा या दारुहल्दी भी कहा जाता है। इसके गुणों के कारण इसे “कस्तुरीपुष्प” भी कहा जाता है। 6 से 18 फीट उंचा इसका पौधा अपनी पीली लकड़ी के कारण पहचाना जाता है। यह पौधा पीले रंग के फूलों से युक्त होता है। इसकी लकड़ी को उबालने के बाद भी उसमें पीलापन विद्यमान रहता है। दारुहल्दी का नाम आयुर्वेद के जानकारों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे रस प्राप्त किया जाता है जिसका “रसांजन” बनाया जाता है। इसमें पाया जानेवाला तिक्त क्षाराभ (बर्बेरिन) बड़ा ही गुणकारी होता है। “रसांजन” बनाने के लिए दारुहरिद्रा की जड़ वाले भाग में स्थित तने को सोलह गुना पानी में उबालें। जब चार भाग शेष रहे तो छान लें, अब इस काढ़े में बराबर मात्रा में गाय का दूध मिलाकर फिर धीमी आंच पर पकाएं और जब यह काढ़ा शेष रह जाए मतलब रसांजन तैयार है।आइए अब इसके औषधीय प्रयोग को जानें….:– यदि कहीं पर चोट लगी हो या सूजन आ गई हो तो “रसांजन “के लेप मात्र से सूजन और दर्द में काफी लाभ मिलता है।
– यदि आँखों में लालिमा का कारण अभिष्यंद (Conjunctivitis) हो तो 250 मिलीग्राम रसांजन में 25 मिली गुलाबजल मिलाकर आँखों में एक बूंद टपका देने से लाभ मिलता है।
– कान के दर्द या स्राव में भी इसे ड्राप के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
आईये देखें इस वनौषधि की वीडीयो डाक्यूमेंट्री जिसे हिमालय में तैयार किया गया है

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