जानें कैसे होती है रक्तमोक्षण चिकित्सा

आपने अक्सर असहनीय पीड़ा से जूझते हुए रोगियों को कई बार देखा होगा।ऐसी ही एक वेदना सियाटिका नामक रोग में भी उत्पन्न होती है जिसका नाम ही गृधसी है अर्थात वेदना के कारण व्यक्ति की चाल वल्चर यानि गिद्ध के सामान हो जाय।मूलतया यह पीड़ा पैरो में होती है लेकिन इसके पीछे का मूल कारण कमर से निकलनेवाली सियाटिक नर्व में उत्पन्न सूजन है।यह दर्द कुछ इस प्रकार का होता है कि व्यक्ति चलने फिरने उठने एवं बैठने में भी असमर्थ होता है।दर्द के साथ पैरों में सुन्नता उत्पन्न होना इसका एक विशेष लक्षण है।यह दर्द सामान्यतया कमर से होता हुआ पैरों के पिछले हिस्से से होते हुए अंगूठे तक जाता है।यह दर्द दोनों पैरों में भी हो सकता है लेकिन प्रायः रोगी एक पाँव में वेदना बताते हैं।रोगी दर्द से बैचेन हो कभी बैठता है अथवा कभी उठ खड़ा होता है।न चलने से उसे राहत मिलते है और न ही बैठने से।इन सब कारणों से वह यहां वहाँ चिकित्सकों के चक्कर काटता है फिर भी वी वो परेशान ही रहता है जिस कारण वह एक प्रकार की मानसिक तनाव से अकारण ही दो-चार होता रहता है।अब आईये एक दूसरी अवस्था की चर्चा करते हैं जिसका नाम’जोड़ों का दर्द ‘है यह दर्द भी संधिवात एवं आमवात के रूप में रोगियों को कष्ट देता है।हम इन रोगों की विशेष चर्चा न करते हुए यहां सिर्फ और सिर्फ इनके सरल इलाज की चर्चा करेंगे जो बड़ी ही सरलता से चिकित्सक अपनी क्लीनिक पर प्रयोग कर लाभ देख सकते हैं।उस चिकित्साविधि का नाम है अलाबू प्रयोग।अब आप सोच रहे होंगे कि ये तो बड़ी जटिल प्रक्रिया होगी और इसमें बड़ा ही खर्च आता होगा।जी नहीं,यह अत्यंत सरल एवं प्रभावी चिकित्सा है जिसे हम आपको और भी अधिक सरलता से समझाते हैं।
क्या है ये अलाबू? आज के समय में अलाबू,श्रृंग एवं जलौका की बात चिकित्सकों को कम ही समझ में आती है।कौन पड़े इन झंझटों में…आज हम आपको उज्जैनी के चिकित्सक डॉ रामा अरोराजी एम्.डी.आयुर्वेद द्वारा आयुष दर्पण को उपलब्ध कराये गए अनुभवों को शेयर करते हैं जिसे आप अपनी चिकित्सा में प्रयोग कर धन,यश एवं कीर्ति प्राप्त कर सकते हैं।
कैसे प्रयोग करें?:-आपको बस दो कांच के गिलास अथवा कांच की बर्नी लेने हैं,दो आर्टरी फॉरसेप लेना है साथ ही स्प्रिट,कॉटन,माचिस,शहद,हल्दी एवं बेलाडोना प्लास्टर।
आईये अब प्रयोग विधि को जानें:
1.अलाबू प्रयोग हेतु चयनित स्थान पर या जोड़ों पर जहां आपने प्रयोग करना है वहाँ स्प्रिट स्वेब से स्टेरलाईजेशन हेतु अच्छी तरह से सफाई कर दें।
2.एक आर्टरी फॉरसेप डी नेचर्ड स्प्रिट में भिंगोया हुआ,रूई का फोहा लेकर इसे कांच के ग्लास या बर्नी के अंदर अच्छी तरह से फेर दें।
3.स्प्रिट के इस फोहे को माचिस से जला लें।
4.पीड़ा वाली संधि के स्थल पर आप सीधे स्प्रिट फेरा हुआ ग्लास रखें और जलते हुए रूई के फोहे को जल्दी से जल्दी ग्लास के अंदर ले जाकर बाहर खींच लें और ग्लास को सीधे उसी स्थल पर दबा दें।
5.इस प्रकार थोड़े समय में ही ग्लास के अंदर लगा स्प्रिट तीव्रता से प्रज्वलित होता है और ग्लास के अंदर की वायु बाहर निकलकर एक वायुरहित अवकाश क्षेत्र यानि वेक्यूम उत्पन्न कर देती है।अब आप जैसे ही ग्लास को पीड़ायुक्त स्थान में लगाते हैं वैसे ही निगेटिव प्रेशर के कारण ग्लास वहीँ चिपक जाता है।
6.ग्लास को 20 से 25 मिनट तक लगे रहने दें।
7.जब ग्लास को निकालना हो तो उसके मुहं के पास क एक सिरे पर अंगूठे से त्वचा को दबा दें जिससे बाहर की वायु अंदर आ जाय और ग्लास अपनी पकड़ छोड़ देता है।
अब आईये दूसरी विधि की चर्चा करते हैं:-
इसे जलौकावचारण भी कहते है:-
हालांकि आजकल जलौका की उपलब्धता ही कठिन है।लेकिन जलौका का भी एक विकल्प ढूंढ निकाला गया है।
आईये जानते हैं क्या है यह विकल्प:-
1.दो तीन सिरिंज 5 से 10 मिली की लें
2.एक नीडल नंबर 22-23
3.हैंडल सहित सर्जीकल ब्लेड
4.हैंड ग्लब्स एक जोड़ी।
प्रयोग विधि:
1.सिरिंज की बैरल को उसके अगले नोजल वाले सिरे पर लगभग आधा सेंटीमीटर की दूरी से पूरा काट दें।
2.पिस्टन को निकालकर उसके पिछले हिस्से से लगभग 1-2 सेंटीमीटर पर एक दो आरपार छिद्र कर दें।
3.पिस्टन को बैरल के काटे गए सिरे की ओर से प्रविष्ट कराएं।
4.पीड़ा वाले स्थान को चिन्हित कर आवश्यक रूप से प्रच्छान आदि लगाकर सिरिंज को उसी स्थान पर दबाकर रखते हुए पिस्टन को खींचते हैं ताकि नकारात्मक दवाब बने इससे सिरिंज चिपक जायेगी।इसी अवस्था में कुछ देर रखने के लिए पिस्टन में किये गए छेद में पिन अथवा सूई लगा दें जिससे वह वहीँ लॉक हो जाय।
5.अब जब सिरिंज को हटाना ही तो लगाए गए सूई को पिस्टन से निकाल दें जिससे पिस्टन धीरे-धीरे नीचे आता है और सिरिज अपनी पकड़ छोड़ देती है।
अब रोगियों का चयन कैसे करें?:-
रक्तमोक्षण के योग्य एवं अयोग्य रोगियों का वर्णन विभिन्न आयुर्वेदिक ग्रंथों में किया गया है।आप अपने विवेक अनुसार रोगियों की असाधारण स्थितियों को छोड़कर इस विधि का प्रयोग निःसंकोच शूल वाली संधिस्थल पर करें।
प्रयोग पूर्व रोगियों की सामान्य क्लीनिकल जाचें एवं प्रयोगशालीय परीक्षण अवश्य ही करवाएं:-
मधुमेह जैसेरोग से पीडित रोगियों को छोड़ दें।प्रयोगशालीयपरीक्षण मेंHb,BT,CT,BSR,HBsAg ,HIV1&2 अवश्य कराएं।
ताकि हेमोफीलिया जैसी स्थितियों से बचा जा सके।
उपरोक्त अनुभूत प्रयोग उज्जैन के चिकित्सक डॉ राम अरोरा द्वारा लगभग 35 वर्षों से संधिशूल,सीयाटिका जैसे रोगियों में कराया गया है और अबतक इसके परिणाम बड़े ही सफल रहे हैं।डॉ राम अरोराजी ने लगभग 1000 रोगियों में अलाबू एवं 500 रोगियों में सिरिंज अथवा अलाबू विधि का प्रयोग कर सफलता पायी है।उनका कहना हैकि संशमन चिकित्सा के साथ इसका प्रयोग वाकई उत्साहवर्धक परिणाम देनेवाला है।उन्होंने Sciatica,Backache,Cervical pain,Hip Joints pain,Knee joints pain,Heal Pain आदि से पीड़ित रोगियों में इस विधि का प्रयोग कराया है।
उन्होंने
पूर्वकर्म हेतु
1.पीड़ायुक्त संधि स्थल पर पूर्व कर्म अनुसार सिरिंज अथवा अलाबू का चयन किया।
2.जिन रोगियों में संभव हो सका उनमें चयनित संधि स्थल पर सामान्य रूप से स्नेहन एवं नाड़ी स्वेदन का प्रयोग किया।
3.स्प्रिट स्वेब से उपरोक्त स्थल को पौंछते हुए स्नेहरहित शुष्क कर लिया एवं रक्तावसेचन हेतु स्थसल चिन्हित किया।
प्रधान कर्म: चिन्हित स्थल पर निडिल अथवा सर्जीकल ब्लेड से प्रच्छान लगाकर बताई गयी विधि से सिरिंज अथवा अलाबू का प्रयोग लगभग 20-25 मिनट तक किया।
पश्चात कर्म:
1.लगाई गयी सिरिंज अथवा अलाबू को बताई गयी विधि से प्रेशर रिलीज कर हटा दिया गया।
2.अवसेचित रक्त को स्वच्छ रूई से पौंछकर साफ़ कर दिया।
3.प्रच्छान वाले स्थान पर शहद एवं हल्दी लगाई गयी।
4.पूरे क्षेत्र पर बेलाडोना प्लास्टर चिपका दिया गया।
उपरोक्त लेख को चिकित्सकीय ज्ञान वर्धन के उद्देश्य प्रकाशित से किया गया है। बिना आयुर्वेदिक चिकित्सक के निर्देशन के इसका प्रयोग करने पर खतरनाक दुष्परिणाम उत्पन्न हो सकता है।