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च्यवनप्राश: आयुर्वेदिक शास्त्रीय निर्माण विधि, घटक द्रव्य, मात्रा एवं लाभ | रसायन कल्प

च्यवनप्राश का शास्त्रीय निर्माण अब पुनः चर्चा में है। आयुष दर्पण के अनुसार, आयुर्वेदिक ग्रन्थ ‘चरक संहिता’ (सूत्रस्थान 1/62-74) में वर्णित रसायन सूत्र के आधार पर तैयार किया गया च्यवनप्राश कास-श्वास, हृदय रोग, क्षय एवं वयोवृद्धावस्था में सर्वश्रेष्ठ औषध माना गया है पारम्परिक विधि में ताज़े 500 आँवलों से क्वाथ निर्माण किया जाता है, जिसमें दशमूल, जीवादि और बल्य औषधियों सहित कुल 48 औषध-द्रव्य सम्मिलित होते हैं। लेहपाक की अवस्था प्राप्त होने पर इसमें गोघृत, तिल तैल, शर्करा, पिप्पली, वंशलोचन और मधु मिलाकर “च्यवनप्राश अवलेह” तैयार किया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह रसायन अग्नि-दीपन, वात-अनुलोमन, स्मृति-वर्धन, बल-ओज और शरीर की प्रतिरक्षा बढ़ाने में प्रभावी माना गया है। इसका नियमित सेवन 12–24 ग्राम, दूध के साथ किया जाता है। आयुर्वेदाचार्यों का मत है— “च्यवनप्राश वयस्थापक है, तथा वृद्धावस्था के लक्षणों को विलम्बित करता है।”
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🌿 च्यवनप्राश — शास्त्रीय रसायन सूत्र

(चरक संहिता व भैषज्य रत्नावली पर आधारित)

आयुर्वेद में च्यवनप्राश को वयःस्थापन रसायन कहा गया है। यह सूत्र चरक संहिता से सिद्ध हुआ, जहाँ इसे च्यवन ऋषि की क्षीण अवस्था में पुनर्यौवन प्राप्त करने हेतु तैयार किया गया।

चरक संहिता, चि. 1/4
“च्यवन ऋषिं जरा व्याधि मृत्युभ्यः परिरक्षति”
अर्थ — च्यवनप्राश वृद्धावस्था, रोग एवं मृत्यु के प्रभाव से शरीर की रक्षा करता है।


🍎 च्यवनप्राश की मूल धातु — आँवला

च्यवनप्राश का मुख्य रसायन धात्री (आँवला) है।
500 ताज़े आँवले इस सूत्र का प्रमुख आधार हैं।

भावप्रकाश निघण्टु
“धात्री रसायनी वयःस्थापनी”

आँवला–

  • प्राकृतिक विटामिन C का स्रोत
  • बल्य एवं ओजवर्धक
  • त्रिदोष शामक
  • युवा अवस्था बनाए रखने वाला

🌀 औषध संरचना — दशमूल एवं जीवनीय गण

चरक संहिता – गण वर्ग

दशमूल द्रव्य:

बिल्व, अग्निमन्थ, श्योनाक, गम्भारी, पाटला, बला, शालपर्णी, पृश्निपर्णी, मुदगपर्णी, माषपर्णी।

ये द्रव्य–
✔ वात शामक
✔ सूजनरोधी
✔ बल वर्धक
✔ श्वास/कास रोग में उपयोगी

जीवनीय गण द्रव्य:

जीवक, ऋशभक, मेदा, महा मेदा, काकोली, क्षीरकाकोली।

ये द्रव्य–
✔ धातुपोषक
✔ शुक्रवर्धक
✔ अग्निप्रदीपक
✔ रसायन


🧪 शास्त्रीय निर्माण विधि

भैषज्य रत्नावली, कास रोगाधिकार में वर्णित:

1. काढ़ा निर्माण (क्वाथ):

  • सभी द्रव्यों का यवकुट किया जाता है
  • 1 द्रोण (12.288 L) जल में उबाल
  • आँवला पोटली सहित उबाला जाता है
  • 1/4 अवशेष (आढक) रहने पर क्वाथ सिद्ध

2. आँवला पिष्टि:

  • उबले आँवले से बीज अलग
  • गूदा छानि कर पिष्टि तैयार
  • घृत व तिल तेल में भूनना

3. लेहपाक:

  • क्वाथ + शर्करा का लेहपाक
  • भुनी पिष्टि में मिलाकर पुनः पकाना

4. प्रक्षेप द्रव्य:

  • पिप्पली
  • त्वक
  • वंशलोचन
  • नागकेशर
  • इलायची
  • तेजपत्र

5. मधु मिश्रण:
ठंडा होने पर मधु मिलाकर अवलेह सुरक्षित किया जाता है।


🧠 च्यवनप्राश कैसे काम करता है?

चरक रसायन अध्याय के अनुसार

“स्मृतिमेधां च वर्धयेत्”
च्यवनप्राश–
✔ स्मृति व बुद्धि वृद्धि
✔ इन्द्रिय स्थिरता
✔ ओज वृद्धि
✔ बल एवं कांति वर्धन
✔ Agni (Digestive Fire) सुधार

आधुनिक दृष्टिकोण:

  • Natural antioxidants (Amla polyphenols)
  • Collagen protection
  • Immunity boost
  • Anti-ageing effect
  • Cellular rejuvenation

🩺 उपयोग (Indications)

चरक संहिता एवं भावप्रकाश अनुसार:
✔ कास
✔ श्वास
✔ स्वरभेद
✔ क्षय
✔ हृदय रोग
✔ वात-पित्त विकार
✔ मूत्र एवं शुक्र दोष
✔ स्मृति ह्रास
✔ दुर्बलता


💊 मात्रा व सेवन विधि

12–24 ग्राम
अनुपान: गुनगुना दूध

समय: प्रातः व सायं


🏛 शास्त्रीय संदर्भ

  • चरक संहिता – चि. 1/1-62
  • भैषज्य रत्नावली – कास रोगाधिकार
  • अष्टांगहृदय – उत्तरस्थान
  • शारंगधर संहिता – मध्यखंड
  • भावप्रकाश निघण्टु

🟢 Why This is Classical Chyawanprash?

✔ शास्त्रीय सामग्री (36 द्रव्य)
✔ द्रोण मात्रा क्वाथ
✔ घृत-तैल सहपाक
✔ प्रक्षेप द्रव्य
✔ मधु योग
✔ धात्री मुख्य


 📌 निष्कर्ष

च्यवनप्राश आयुर्वेद में केवल एक सप्लीमेंट नहीं बल्कि पूर्ण रसायन सूत्र है —
जो ओज, बल, स्मृति, कांति, प्रतिरक्षा, हृदय स्वास्थ्य और वयःस्थापन प्रदान करता है।

“रसायनं सर्वरोगप्रशमनम्” — भैषज्य रत्नाव

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