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जानिये पानी पीने के आयुर्वेदीय कायदे

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पानी पीने के कायदों के बारे में रोचक जानकारी दे रहे हैं आयुष दर्पण पोर्टल के संपादक डॉ.नवीन जोशी एम.डी.आयुर्वेद।
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पानी के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। कहते हैं शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दिनभर में कम से कम आठ से दस गिलास पानी जरूर पीना चाहिए। पानी पीना फायदेमंद तो होता ही है, लेकिन तब जब सही मात्रा में और सही तरीके से पीया जाए। अगर पानी को गलत तरीके से पीया जाए या गलत समय में अधिक मात्रा में पीया जाए तो वह शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है, ऐसा आयुर्वेद में वर्णित है।

आयुर्वेद को जीवन का विज्ञान माना जाता है,भोजन से लेकर जीवनशैली तक की चर्चाएं इस शास्त्र में समाहित हैं। आज हम आयुर्वेदिक ग्रन्थ अष्टांग संग्रह (वाग्भट्ट) में बताए गए पानी पीने के कुछ कायदों से आपको रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। चलिए जानते हैं पानी कब, कैसे और कितना पीना चाहिए……
भक्तस्यादौ जलं पीतमग्निसादं कृशा अङ्गताम!! भोजन ग्रहण करने से पहले यदि पानी पीया जाए तो यह जल अग्निमांद (पाचन क्रिया का मंद हो जाना)उत्पन्न करता है।जिसके कारण भोजन के पाचन में बाधा होती है।

अन्ते करोति स्थूल्त्वमूध्र्वएचामाशयात कफम! भोजन के अंत में पानी पीने से शरीर में स्थूलता और आमाशय के ऊपरी भाग में कफ की बढ़ोतरी होती है। सरल शब्दों में कहा जाए तो खाने के तुरंत बाद अधिक मात्रा में पानी पीने से मोटापा बढ़ता है व कफ संबंधी समस्याएं भी परेशान कर सकती हैं।

प्रयातिपित्तश्लेष्मत्वम्ज्वरितस्य विशेषत:!! आयुर्वेद के अनुसार बुखार से पीड़ित व्यक्ति प्यास लगने पर ज्यादा मात्रा में पानी पीने से तंद्रा,बदहजमी,अंगों में भारीपन,मिचली आने की इच्छा, सांस व जुकाम जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

आमविष्टबध्यो :कोश्नम निष्पिपासोह्यप्यप: पिबेत! आमदोष के कारण होने वाली समस्याओं जैसे अजीर्ण और कब्ज जैसी स्थितियों में प्यास न लगने पर भी गुनगुना) पानी पीते रहना चाहिए।

मध्येमध्यान्ग्तामसाम्यं धातूनाम जरणम सुखम!! खाने के बीच में थोड़ी मात्रा में पानी पीना शरीर के लिए अच्छा होता है। आयुर्वेद के अनुसार खाने के बीच में पानी पीने से शरीर की धातुओं में समता उत्पन्न होती है और खाना बेहतर ढंग से पचता है।

अतियोगेसलिलं तृषय्तोपि प्रयोजितम! प्यास लगने पर एकदम ज्यादा मात्रा में पानी पीना भी शरीर के लिए बहुत नुकसानदायक होता है। प्यास लगने पर अधिक मात्रा में पानी पीने से पित्त और कफ दोष से संबंधित बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है।

यावत्य: क्लेदयन्त्यन्नमतिक्लेदोह्य ग्निनाशन:!! पानी उतना ही पीना चाहिए जो अन्न का पाचन करने में समर्थ हो,ऐसी स्थिति में अधिक पानी पीने से भी पाचन क्रिया मंद हो सकती है। इसलिए भोजन की मात्रा के अनुरुप ही पानी पीना शरीर के लिए उचित रहता है।
बिबद्ध : कफ वाताभ्याममुक्तामाशाया बंधन:! पच्यते क्षिप्रमाहार:कोष्णतोयद्रवी कृत:!!
कफ और वायु के कारण जो भोजन नहीं पचा है उसे शरीर से बाहर कर देता है। गुनगुना पानी उसे सरलता से पचा देता है।
(सभी सन्दर्भ सूत्र अष्टांग संग्रह अध्याय 6 के 41-42,33-34 एवं 36-37 से लिये गए हैं)

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