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जानिये अपने शरीर स्थित पहिये को पार्ट 2

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(गतांक से आगे………). ‘स्वाधिस्ठान चक्र ‘ के अल्प सक्रिय होने के लक्षण-इंसेंसिटिव होना,सेक्सुअल क्रियाशिलता में कमी होना,अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाना,इच्छाओं का अभाव होना,रचनात्मकता का अचानक से अभाव होना,भावनाओं से थकान की अनुभूति,खुश होने की इच्छा का भी अभाव हो जाना।ये सभी लक्षण ‘स्वाधिस्ठान चक्र ‘यानि सेक्रल चक्र की अल्प सक्रियता की ओर इंगित करते हैं।
‘स्वाधिस्ठान चक्र ‘को संतुलित करने के उपाय:-चूंकि स्वाधिस्ठान चक्र से नारंगी रंग का सीधा संबंध होता है अतः ऐसे फल या सब्जियां जिनका रंग गहरा नारंगी होता है स्वाधिस्ठान चक्र को संतुलित करने में कारगर होती हैं जैसे:आम,जामुन,बादाम, कद्दू आदि।इसी प्रकार ‘व’ का उच्चारण,योग-ध्यान-साधना,रचनात्मक कार्यो को करना जैसे:-पेटिंग,नृत्य आदि स्वाधिस्ठान चक्र को संतुलित कर देते हैं।ं
तीसरा चक्र है ‘मणिपुर चक्र’ के रूप में जाना जाता है यहां नाभि के निकट स्थित होता है यह चक्र तंत्रिका तंत्र ,पाचन तंत्र (उदर एवं आँतें)लीवर,पैंक्रियास एवं मेटाबोलिक सिस्टम आदि से संबंध रखता है।
‘मणिपुर चक्र ‘ में आई गड़बड़ी के लक्षण :भोजन का पाचन ठीक से न होना,वजन की समस्या,मधुमेह,पेन्क्रियास,लिवर एवं किडनी से सम्बंधित समस्या,भूख नहीं लगना तथा आंतों से सम्बंधित समस्या उत्पन्न होना।
‘मणिपुर चक्र ‘ के अधिक सक्रिय होने के लक्षण:- दूसरो की कमियां निकालना खुद की कमियों को नजरंदाज करने की प्रवृति,केवल अपने लिए और स्वयं के स्वार्थ के वशीभूत होकर कार्य करने की प्रवृति का होना।
‘मणिपुर चक्र ‘ के अल्प सक्रिय होने के लक्षण*- एक अजीब सा डर (एंजाइटी) बना रहना,आत्मविश्वास की कमी,निर्णय लेने की क्षमता में कमी,दूसरों से पूछ क़र ही कार्य करने की प्रवृति,स्वयं के प्रति लापरवाह,दूसरों पर निर्भर रहने की प्रवृति।ये लक्षण मणिपुर चक्र यानि सोलर चक्र के अल्प सक्रिय होने पर दिखाई देते हैं।
‘मणिपुर चक्र ‘को संतुलित करने के उपाय*-पीला रंग मणिपुर चक्र से सम्बंधित होता है अतः ऐसे फल सब्जियां जिनका रंग पीला हो मणिपुर चक्र की गति को संतुलित करने में मददगार होते हैं जैसे:-केला,ओट्स,ताजा अन्नानास,पीली दालें आदि ।इसके योग-ध्यान-साधना का अभ्यास,स्वयं को जानना ,आत्मविश्वास बढ़ानेवाले व्यायाम,साथ ही ‘राम’ का उच्चारण मणिपुर चक्र की गति को संतुलित करता है।
चौथा चक्र ‘अनाहत चक्र’ है जिसे हृदय चक्र या Heart Chakra भी कहते हैं।यह छाती के केंद्र में स्थित होता है।यह हृदय,फेफड़े,स्तन,कंधों एवं हाथों से सम्बंध रखता है।
‘अनाहत चक्र’ का शारिरिक एवं मानसिक प्रभाव*-अनाहत चक्र स्वयं के प्रति लगाव की भावना,दूसरों के प्रति कृतज्ञता का भाव,खुशी एवं जुड़ाव के लिये जिम्मेदार होता है।
‘अनाहत चक्र ‘ यानि हृदय चक्र में आई गड़बड़ी के लक्षण* श्वसन संस्थान से सम्बंधित समस्या,हृदय से सम्बंधित परेशानी,रक्त के प्रवाह में आई गड़बड़ी,स्तन से सम्बंधित परेशानी जैसे :कैंसर,लम्प इत्यादि उत्पन्न होना ‘अनाहत चक्र’ की गति बिगड़बे पर अक्ज़र दिखाई देते हैं।
‘अनाहत चक्र ‘ के अधिक सक्रिय होने के लक्षण:- अनाहत चक्र के अधिक सक्रिय होने पर निम्न लक्षण दृष्टिगोचर होते है-अत्यधिक प्यार उमड़ना,गुस्सा आना,शोक और खुश होने की अधिक प्रवृति,अत्यधिक केयरिंग यानि ख्याल रखने की प्रवृति होना अनाहत चक्र के अधिक सक्रियता को इंगित करते हैं। ‘अनाहत चक्र’ के अल्प सक्रिय होने के लक्षण*-नकारत्मकता,अपने प्रति प्यार का अभाव,समाज से कटे रहने की प्रवृति,दूसरों से जुड़ने या दूसरों पर विश्वास करने की प्रवृति में कमी।ये लक्षण ‘अनाहत चक्र’ के अल्प सक्रिय होने की ओर इंगित करते हैं।
‘अनाहत चक्र’ यानि हृदय चक्र को सन्तुलित करने के उपाय*-हरा रंग अनाहत चक्र यानि ह्रदय चक्र से सबंध रखता है अतःगहरे हरे रंग की हल्के वजनी फल सब्जीयों का प्रयोग अनाहत चक्र को संतुलित रखने में मददगार होता है जैसे:ब्रोकली,करेला,हरी साग आदि।इसके अतिरिक्त योग-ध्यान-साधना का अभ्यास, ‘यं’ का उच्चारण अनाहत चक्र (हृदय चक्र) की गति को संतुलित रखने में मददगार होता है।(क्रमशः……….)

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