आयुष दर्पण

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साग नही जनाब कई रोगों की दवा जानिये।

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कई मर्ज की दवा है पुनर्नवा
हमारे आसपास ऐसी कई वनस्पतियां हैं जिनका प्रयोग ग्रामीण अंचलों में अक्सर साग के रूप में किया जाता है ऐसे ही पर्वतीय क्षेत्र में एक साग जो पुनर्नम के नाम से जानी जाती है आइए आज आपको हम उसके औषधीय गुणों के बारे में बताते हैं। यह एक ऐसी वनस्पति है जिसे पुनर्नवा के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद के जानकार इसे एक प्रचलित औषधि के रूप में सदियों से प्रयोग कराते आ रहे हैं ।पुनर्नवा जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है यह पुर्न यानि दुबारा नवा अर्थात नई यानि जो शरीर मे नवीन कोशिकाओं को जन्म दे नूतनता लाये ऐसी वनस्पति पुनर्नवा है।लेटिन में इसे बोरहावीया डिफ्युजा के नाम से जाना जाता है।इसकी दो प्रजातियां होती है एक श्वेत पुनर्नवा और दूसरी रक्त पुनर्नवा।अभी बारिश के मौसम के इसके छोटे पौधे निकलते है जो 2 से 3 मीटर लंबे होते हैं और जमीन पर फैलते हैं।इसके नामके साथ एक और रोचक पहलू है सूखा हुआ पुनर्नवा का पौधा बरसात आने पर फिर से नया जीवन प्राप्त कर लेता है इन्ही गुणों के कारण प्राचीन ऋषियों ने इसका नाम पुनर्नवा रखा हो।श्वेत पुनर्नवा अत्यंत ही औषधि गुणों से युक्त होती है जबकि रक्त पुनर्नवा आपको अपने आसपास ही सड़कों के किनारे लगी मिल जाएगी।पुनर्नवा का मुख्य औषधीय घटक एक प्रकार का एल्केलायड है, जिसे पुनर्नवा कहा गया है। इसकी मात्रा जड़ में लगभग 0.04 प्रतिशत होती है। अन्य एल्केलायड्स की मात्रा लगभग 6.5 प्रतिशत होती है। पुनर्नवा के जल में न घुल पाने वाले भाग में स्टेरॉन पाए गए हैं, जिनमें बीटा-साइटोस्टीराल और एल्फा-टू साईटोस्टीराल प्रमुख है। इसके निष्कर्ष में एक ओषजन युक्त पदार्थ ऐसेण्टाइन भी मिला है। इसके अतिरिक्त कुछ महत्त्वपूर्ण् कार्बनिक अम्ल तथा लवण भी पाए जाते हैं। अम्लों में स्टायरिक तथा पामिटिक अम्ल एवं लवणों में पोटेशियम नाइट्रेट, सोडियम सल्फेट एवं क्लोराइड प्रमुख हैं। इन्हीं के कारण यह अपना अद्भुत औषध गुण दर्शाती है।
कहा गया है
*पुनर्नवं करोति इति पुनर्नवा ।*
जो अपने रक्तवर्धक एवं रसायन गुणों द्वारा सम्पूर्ण शरीर को अभिनव स्वरूप प्रदान करे, वह है ‘पुनर्नवा’ ।
अंग्रेजी में ‘हॉगवीड’ नाम से यह पूरी दुनिया मे जानी जाती है ।
मूँग या चने की दाल मिलाकर इसकी बढ़िया सब्जी बनती है, जो शरीर की सूजन, मूत्ररोगों (विशेषकर मूत्राल्पता), हृदयरोगों, दमा, शरीरदर्द, मंदाग्नि, उलटी, पीलिया, रक्ताल्पता, यकृत व प्लीहा के विकारों आदि में फायदेमंद है । इसके ताजे पत्तों के 15-20 मि.ली. रस में चुटकी भर काली मिर्च व थोड़ा-सा शहद मिलाकर पीना भी हितावह है । भारत में यह सब्जी सर्वत्र पायी जाती है ।
-पुनर्नवा शरीर में संचित मलों को मल-मूत्रादि द्वारा बाहर निकालकर शरीर के पोषण का मार्ग खुला कर देती है ।
–  बुढ़ापे में शरीर में संचित मलों का उत्सर्जन यथोचित नहीं होता । पुनर्नवा अवरूद्ध मल को हटाकर हृदय, नाभि, सिर, स्नायु, आँतों व रक्तवाहिनियों को शुद्ध करती है, जिससे मधुमेह, हृदयरोग, दमा, उच्च रक्तदाब आदि बुढ़ापे में होनेवाले कष्टदायक रोग उत्पन्न नहीं होते ।
-यह हृदय की क्रिया में सुधार लाकर हृदय का बल बढ़ाती है । पाचकाग्नि को बढ़ाकर रक्तवृद्धि करती है । विरूद्ध आहार के कारण शरीर मे इक्कठे टॉक्सिन्स को निकालकर यह रोगों से रक्षा करती है ।
-बच्चों में पुनर्नवा के पत्तों के 100 ग्राम स्वरस में मिश्री चूर्ण 200 ग्राम व पिप्पली (पीपर) चूर्ण 12 ग्राम मिलाकर पकायें तथा चाशनी गाढ़ी हो जाने पर उसको उतार के छानकर शीशी में रख लें । इस शरबत को 4 से 10 बूँद की मात्रा में (आयु अनुसार) रोगी बालक को दिन में तीन-चार बार चटायें । खाँसी, श्वास, फेपडों के विकार, बहुत लार बहना, जिगर बढ़ जाना, सर्दी-जुकाम, हरे-पीले दस्त, उलटी तथा बच्चों की अन्य बीमारियों में बाल-विकारशामक औषधि कल्प के रूप में इसका उपयोग बहुत लाभप्रद है ।

– नेत्रों की फूलीः पुनर्नवा की जड़ को घी में घिसकर आँखों में आँजें ।
-नेत्रों की खुजली में पुनर्नवा की जड़ को शहद या दूध में घिसकर आँख में आँजें ।
-नेत्रों से पानी गिरनाः पुनर्नवा की जड़ को शरहद में घिसकर आँखों में आँजें ।
– पेट के रोग में गोमूत्र एवं पुनर्नवा का रस समान मात्रा में मिलाकर पीयें ।
–  गैस की समस्या होने पर 2 ग्राम पुनर्नवा के मूल का चूर्ण, आधा ग्राम हींग व 1 ग्राम काला नमक गर्म पानी से लें ।
– मूत्रावरोध में  पुनर्नवा का 40 मि.ली. रस अथवा उतना ही काढ़ा पीयें पुनर्नवा के पत्ते बाफकर पेडू पर बाँधें । 1 ग्राम पुनर्नवाक्षार पानी के साथ पीने से तुरंत फायदा होता है ।
.- पथरी मेंपुनर्नवा की जड़ को दूध में उबालकर सुबह-शाम पीयें ।
-सूजन में पुनर्नवा की जड़ का काढ़ा पिलाने एवं सूजन पर जड़ को पीसकर लेप करने से लाभ होता है ।
-हाइड्रोसिल में  पुनर्नवा का मूल दूध में घिस के लेप करने से वृषण की सूजन मिटती है ।
-पीलिया में पुनर्नवा के पंचांग (जड़, छाल, पत्ती, फूल और बीज) को शहद एवं मिश्री के साथ लें अथवा उसका रस या काढ़ा पीयें ।
-पागल कुत्ते के काटने पर सफेद पुनर्नवा के मूल का 25 से 50 ग्राम घी में मिलाकर रोज पीयें ।
फोडे में पुनर्नवा के मूल का काढ़ा पीने से कच्चा अथवा पका हुआ फोड़ा भी मिट जाता है ।
अनिद्रा में पुनर्नवा के मूल का 100 मि.ली. काढ़ा दिन में 2 बार पीयें ।
संधिवात में पुनर्नवा के पत्तों की सब्जी सोंठ डालकर खायें ।
-एड़ी में वायुजन्य वेदना होती हो तो ‘पुनर्नवा तेल’ एड़ी पर घिसें व सेंक करें ।
-योनिशूल में पुनर्नवा के हरे पत्तों को पीसकर बनायी गयी उँगली जैसे आकार की लंबी गोली को योनी में रखने से भयंकर योनिशूल भी मिटता है ।
-खूनी बवासीर में पुनर्नवा के मूल को पीसकर फीकी छाछ (200 मि.ली.) या बकरी के दूध (200 मि.ली.) के साथ पीयें ।
-हृदयरोग के कारण सर्वांग सूजन हो गयी तो पुनर्नवा के मूल का 10 ग्राम चूर्ण और अर्जुन की छाल का 10 ग्राम चूर्ण 200 मि.ली. पानी में काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीयें ।
दमा में  10 ग्राम भारंगमूल चूर्ण और 10 ग्राम पुनर्नवा चूर्ण को 300 मि.ली. पानी में उबालकर काढ़ा बनायें । 50 मि.ली. बचे तब सुबह-शाम पीयें ।
हाथीपाँव (फ़ायलेरिया) में 50 मि.ली. पुनर्नवा का रस और उतना ही गोमूत्र मिलाकर सुबह-शाम पीयें ।
-जलोदर में पुनर्नवा की जड़ के 2-3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ खायें ।

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