आयुष दर्पण

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आयुर्वेद में उपवास को लंघन का एक प्रकार माना गया है तथा अग्नि दीपन के लिये इसे श्रेष्ठ साधन माना गया है ।आयुष दर्पण के पिछले लिंक में हमने अपने पाठकों को उपवास को वैज्ञानिक महत्ता को आधुनिक शोध के पैरामीटर पर भी सिद्ध करने वाला अध्ययन प्रकाशित किया था,पढ़ें https://ayushdarpan.com/importance-of-exercise-and-fasting/
अक्सर हम पार्टी में ढेर सारा भोजन लेने को तरजीह देते हैं जो कहीं न कहीं सेहत के लिये नुकसानदायक होता है ।आयुर्वेद हित आहार और मित आहार को स्वास्थ्य के लिये श्रेष्ठ मानता है और लंघन यानि शरीर मे हल्कापन लानेवाले उपक्रमों में उपवास को तरजीह देता है।हमारी सनातनी परंपरा में भी हम अक्सर दिन के हिसाब से ईश्वर में आस्था रखते हुए उपवास रखने की परंपरा का पालन करते आ रहे हैं।लेकिन शायद अबतक इसके वैज्ञानिक पहलुओं को न जानते हों।न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के दिसबर 26 संस्करण में प्रकाशित जान हॉपकिन्स इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक मार्क मेटसन के रिव्यू आर्टिकल को देखने पर यह सिद्ध होता है बीच बीच मे किया जानेवाला उपवास शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है।उपवास हमारी कोशिकाओं को मेटाबोलिक स्विचिंग के जरिये अपने रिज़र्व शुगर बेस्ड फ्यूल को कंज्यूम करने को मजबूर करता है जिससे धीमी मेटाबोलिक प्रॉसेस से फैट से ऊर्जा का निर्माण होता है।मेटसन का कहना है कि इस मेटाबोलिक स्विचिंग से शरीर मे रक्तगत शर्करा की मात्रा नियंत्रित होती है तनाव कम होता है तथा सूजन रोधी प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं।मेटसन के अनुसार बीच बीच मे किया गया उपवास मधुमेह और मोटापे जैसे रिस्क फेक्टर्स को कम कर देता है। मेटसन के अनुसार उपवास ब्रेन के हेल्थ के लिये भी लाभकारी है।उन्होंने ये सभी परिणाम साउथ वेल्स के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में किये गये दो अलग अलग शोधों से प्राप्त किये हैं। कहीं न कहीं मेटसन का यह शोध परिणाम आयुर्वेद के लंघन के सिद्धांतों के लाभ की पुष्टि करता है।इसी शोध के आलेख को आयुष दर्पण के अंग्रेजी पोर्टल पर लिंक http://ayushdarpan.org/intermittent-fasting-live-fastlive-longer/ पर भी प्रकाशित किया गया है।

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