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पेंक्रियाटाईटीस से घबरायें नहीं :पद्मश्री वैद्य बालेंदु प्रकाश

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आयुष दर्पण के सुधि पाठकों के लिये पेंक्रियाटाईटीस नामक बीमारी की जानकारी और आयुर्वेदिक सटीक इलाज की जानकारी देता पद्मश्री वैद्य बालेंदु प्रकाश का लेख
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जीवनशैली और बदलते परिवेश की एक घातक और जानलेवा बीमारी है पेंक्रियाटाईटीस
भारत में इस रोग से पीड़ित मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
भारत में होने वाला इस बीमारी का प्रकार, क्रोनिक ट्रॉपीकाल पेंक्रियाटाईटीस होता है जिसमे भोजन में प्रोटीन तथा खनिज तत्वों की कमी का होना मुख्य कारण है।

जानें क्या हैं लक्षण?:

अचानक पेट के बीच एवं ऊपरी भाग में असहनीय तेज दर्द के साथ उल्टियां, उबकाई आने या जी मिचलाने के लक्षणों में सामान्य चिकित्सा से लाभ ना होने पर रोगी को आपातकालीन कक्ष में भर्ती कराना पड़ता है। तब रक्त की जांच तथा अल्ट्रासाउंड/ सीo टीo स्कैन या एमo आरo सीo पीo की सहायता से विशेषज्ञ एक्यूट अथवा क्रॉनिक पेनक्रिएटाइटिस जैसी भयावह, त्रासदायक तथा जानलेवा बीमारी का निदान कर पाते हैं। 

वर्ष 1692 में यूरोप के डच मूल के शरीर रचना विशेषज्ञ, डॉ निकोलस ट्यूलिप ने पहली बार इस रोग का उल्लेख किया था। परंतु आज इस बीमारी से ग्रसित होने वाले रोगियों की विश्व में लगातार बढ़ोतरी हो रही ह, जिससे भारत भी अछूता नहीं रहा है। 

पेनक्रिएटाइटिस, पेनक्रियाज (अग्नाशय) के शोथ की बीमारी है, जोकि उत्तरोत्तर गंभीर रूप धारण कर रोगी एवं उसके परिवारजनों के स्वास्थ्य एवं आर्थिकी के साथ मानस को भी बुरी तरह प्रभावित करता है। रोग की अचानक दोबारा होने की आशंका से इस रोग का रोगी एवं उसके परिजन सदा डर के साथ जीते हैं । आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में इस रोग के कारणों में शराब एवं आनुवंशिकी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। लेकिन भारत में अधिकतर क्रॉनिक ट्रॉपिकल पेनक्रिएटाइटिस के रोगी पाए जाते हैं, जिनमें शराब के सेवन या आनुवंशिकी का इतिहास बहुत कम मिलता है। 

मुंबई में कार्यरत पेट रोग विशेषज्ञ डॉ प्रभा सावंत एवं उनके सहयोगियों द्वारा मेडिसिन अप डेट के 2005 के अंक में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार भारत में इसके रोगियों के निदान की आयु औसत 24 वर्ष है, और भोजन में प्रोटीन तथा खनिज तत्वों की कमी इसका मुख्य कारण है। जर्नल ऑफ गॅस्ट्रोएंटेरोलॉजी एंड हेपाटोलॉजी के 2004 के अंक में प्रकाशित एक शोध पत्र में देश के दक्षिणवर्ती राज्यों में इस रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या विश्व में सर्वाधिक बताई गयी है, जहां विश्व में अमूमन 4-15/100,000 रोगी पाए जाते हैं, वहीं दक्षिण भारत में इनकी संख्या 114-200/100,000 बताई गई है । वर्ष 2014 में प्रकाशित एक अन्य शोध पत्र में दक्षिणवर्ती राज्यों में वर्ष 2007-13 में इन रोगियों की संख्या में 2000-06 की गणना से 13.3  प्रतिशत की बढ़ोतरी भी बताई गई है। 

अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका, एक्टा साइंटिफिक गॅस्ट्रोइंटेस्टैनल डिसॉर्डर्स के अगस्त 2019 के अंक में छपे ‘डेमोग्रफी ऑफ पेनक्रिएटाइटिस पेशेंट्स इन इंडिया – ए हॉस्पिटल बेस्‍ड स्टडी’ शीर्षक के शोध पत्र में पहली बार उत्तरी भारत में भी इस रोग से पीड़ित रोगियों का उल्लेख किया गया है । 800 मरीज़ों के समूह से एकत्र आँकड़ों पर आधारित इस शोध पत्र में उत्तर प्रदेश से 122, महाराष्ट्र से 69,  गुजरात से 51, उत्तराखंड से 47 , हरयाणा से 47 , राजस्थान से 37, मध्यप्रदेश से 32, पश्चिम बंगाल से 27, छत्तीस गढ़ से 24, पंजाब से 23, आसाम से 18, बिहार से 16, जम्मू कश्मीर से 8, उड़ीसा से 8, हिमाचल प्रदेश से 7, झारखंड से 5, त्रिपुरा से 2, सिक्किम से 1 रोगी आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए आए हुए दर्शाए गए हैं । दक्षिण भारत से आने वाले मरीज़ों की संख्या कुल 150 है | इन आंकड़ों में सबसे ज्यादा चौकाने वाली बात यह है कि इन रोगियों में से 70% ने शराब का कभी भी सेवन नहीं किया था । इसी तरह 80% रोगियों ने तंबाकू का कभी प्रयोग नहीं किया था ।मात्र 5% रोगी अनुवांशिक कारणों से इस रोग से पीड़ित पाए गए ।इन रोगियों में 11 वर्ष से कम उम्र के 25, 11 से 18 वर्ष के 85, 19 से 45 वर्ष तक के 613 तथा 45 वर्ष से ज़्यादा उम्र के 77 लोग शामिल थे । यह अध्ययन उत्तर भारत में स्थित एक विशिष्ट आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्र में किया जा रहा है, जहां पर वर्ष 1997 से अभी तक 925 पेनक्रिएटाइटिस के विभिन्न प्रकारों से पीड़ित रोगी धातुओं पर आधारित आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए देश-विदेश के सुदूर स्थानों से आए हैं ।

आहार में खनिज तत्वों की कमी से होने वाले इस रोग के कथन के समर्थन के लिए यह बात गौरतलब है कि ताम्र, पारद, गंधक और जड़ी बूटियों से तीन वर्षों में बनने वाले एक खनिज योग से विभिन्न प्रकार के पेनक्रिएटाइटिस से पीड़ित रोगियों को उल्लेखनीय लाभ प्राप्त हुआ है। हाल ही में इस अध्ययन के परिणामों को नवंबर 2019 में अमेरिकन पैन्क्रियटिक असोसिएशन तथा जापान पॅनक्रियास सोसायटी की पचासवीं संयुक्त वर्षगांठ पर हवाई, अमेरिका में हुए सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया | इस पोस्टर के संक्षिप्त विवरण को अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल ‘पैंक्रियास’ में भी स्थान मिला | आयुर्वेदिक खनिज योग की रासायनिक संरचना का अध्ययन भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर के इनऑर्गेनिक एवं फिजिकल केमिस्ट्री विभाग में किया जा चुका है, जिससे ज्ञात होता है कि इस योग में किसी भी तरह के धातु मुक्त रूप में उपस्थित नहीं है | चूहों में हुए अध्ययन में इस औषधि से कोई विषाक्तता उत्पन्न नहीं हुई है | एल-आर्जिनिन नामक पेनक्रिएटाइटिस उत्पन्न करने वाले रसायन के प्रयोग से चूहों में  हुए अध्ययन में इस औषधि को पेनक्रिएटाइटिस प्रतिरक्षण में प्रभावी रूप से सक्षम पाया गया है |
कृषि, पर्यावरण एवं वानिकी में घटते खनिजों की मात्रा के तथ्य से हमारे देश के वैज्ञानिक एवं राजनेता अनभिज्ञ नहीं हैं | कृषि वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार देश के विभिन्न हिस्सों में जमीन में घटते हुए नाइट्रोजन, लोहा, मैंगनीज, जस्ता और अन्य खनिजों कि कहीं अत्यंत कमी और कहीं पर गंभीर रूप से बढ़ोतरी बताई गई है | जिनका मुख्य कारण कीटनाशकों एवं उर्वरकों का अंधाधुन एवं गैर वैज्ञानिक प्रयोग है |

स्वामीनाथन कमिटी की वर्ष 2006 की रिपोर्ट में देशभर में आधुनिक कृषि भूमि की जांच के लिए लैब बनाने की संस्तुति की गई है | अंतरराष्ट्रीय संस्था पीडब्ल्यू सी की 2019 में जारी एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि भूमि से अनाज की अधिक पैदावार लेने के कारण भारत की कृषि भूमि की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आ रही है, जिसके कारण अनाज, दाल, तिलहन, सब्जियों एवं फलों में खनिज पोषक तत्वों की घोर कमी दिखाई देने लगी है | इसी परिपेक्ष में, 17 फरवरी 2015 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का आरंभ राजस्थान के सूरतगढ़ में किया | इस योजना का उद्देश्य कृषि मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाना एवं फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्व एवं खाद की सलाह किसानों को देना है | इस योजना के अंतर्गत 3 साल में 14 करोड किसानों को कार्ड देने की योजना है, जिससे कि खनिज तत्वों की कमी से होने वाले पेनक्रिएटाइटिस तथा अन्य रोगों के रोकथाम में मदद हो सकेगी | सरकार की यह एक अच्छी पहल है और इसका भरपूर स्वागत के साथ व्यापक प्रचार-प्रसार होना चाहिए |

असंक्रामक एवं जीर्ण शोथ रोगों की श्रेणी में आने वाली वाले पेनक्रिएटाइटिस रोग के बारे में भारत सरकार के चिकित्सा अनुसंधान इकाइयों का उदासीन रवैया है जबकि इस रोग के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है | साथ ही इससे होने वाले आर्थिक बोझ तथा मृत्यु दर भी बढ़ रही है |

अंत में, समय का तकाजा है कि समाज और सरकार इस रोग के रोगियों की बढ़ती संख्या रोकने के लिए जागृत हो और आधुनिक जीवन शैली तथा वातावरण में आए बदलाव का अध्ययन करते हुए इस रोग की चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान परक तरीके से कार्य करें |

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