आईये जानें क्या है शिरोवस्ति

शिर पर तेल धारण निम्न 4 विधियों के प्रयोग से कराया जाता है:-
1.शिरोभ्यंग यानि सामान्य शिर पर कराई गयी तेल की मालिश
2.शिरः सेक यानि शिरोधारा जिसे आप पूर्व की सीरीज में जान चुके हैं।
3.शिरोपिचु धारण:-तेल से पूर्ण (Cotton dipped in oil) रूई को Anterior frontinale पर धारण कराना
4.शिरो बस्ति:
बस्ति शब्द आने से प्रायः चिकित्सक सोचने लग जाते होंगे कि कहीं ये बस्ति का ही कोई प्रकार तो नहीं है।जी नही,बस्ति शब्द का अर्थ धारण करने से है और चूँकि शिर पर तैल का धारण कराया जाता है अतः इस विधि को शिरो बस्ति नाम दिया गया है।
कैसे करें शिरो बस्ति
शिर के circumference के अनुसार 6 इंच मोटे चमड़े की एक टोपी जैसी बना लें।इसे शिर के आकार की तुलना में 12 अंगुल ऊँचा रखें,टोपी का ऊपरी तथा निचला हिस्सा खुला हो।
शिरोबस्ति की विधि
जिस रोगी की शिरो बस्ति करनी हो उसका स्नेहन स्वेदन अवश्य करें।रोगी को वमन के लिये प्रयुक्त होने वाली ऊंचाई की कुर्सी पर बिठा दें अब उस चमड़े की टोपी को उसके शिर के along the circumference फिट कर दें।इसे फिट करने हेतु आप बेंड़ेज से बांधें।बंधन अच्छा होना चाहिये ताकि उपरोक्त चमड़े की टोपी से बनाया गया शिरोबस्ति यंत्र शिर पर ठीक से फिट हो।बेंड़ेज इतना लंबा लें कि वह कान के किनारे से शिर पर घुमते हुए 7-8 बार लेयर बनाये तथा गाँठ temporal region में आये।अब शिरो बस्ति यंत्र के अंदर के हिस्से में उड़द के आंटे को पानी में गूँथकर gap को भर दें।ठीक ऐसा ही कर आप बाहर gap को fill कर दें।इस प्रकार अब कोई gap नही रहेगा और अंदर डाला तेल बाहर नही रिसेगा।
अब रोग के अनुसार हल्का गुनगुना तेल लगभग डे ढ अंगुल प्रमाण तक भर दें।ध्यान रहे रोगी शिर को न हिलाये।
बीच बीच में तेल को चम्मच से थोडा थोडा कर निकालते रहें और सुखोष्ण कर फिर शिरोबस्ति यंत्र में डालते रहें।
कब तक करायें शिरोबस्ति
शिरोबस्ति को
वातज रोगों में 53 मिनट
पित्तज रोगों में 43 मिनट
कफज रोगों में 33 मिनट
स्वस्थ व्यक्तियों में 5 से 6 मिनट
तक तैल धारण कर कराना चाहिये।
जब भी रोगी को नाक या मुहं से स्राव निकलने लगे शिरोबस्ति की प्रक्रिया बंद कर दें।
शिरो बस्ति के लाभ:-
अर्दित(facial paralysis),अनिद्रा(insomnia),अर्धावभेदक (Hemicrania),नेत्र रोगों में शिरो बस्ति लाभप्रद है।
(केवल चिकित्सकीय ज्ञान हेतु प्रसारित )