आयुष दर्पण

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वर्षा ऋतु में त्वचा रोगों से बचाव हेतु विशेषज्ञ की सलाह

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प्रकृति हमारे शरीर में तीन दोषो वात पित्त और कफ का संतुलन बनाए रखती है ,चर्म रोगों के लिये पित्त दोष (भ्राजक पित्त )प्रधान कारण होता है। आधुनिक दृष्टिकोण से रक्त में अशुद्धियों के कारण यह रोग होता है। वर्षा ऋतु में वातावरण में आद्रता बनी रहती है यह भी एक कारण माना जाता है। मुख्य रूप से शरीर के उस स्थान जहां पर प्रकाश नहीं पहुंच पाता ,वहां पर संक्रमण जल्दी हो जाता है।

क्या है त्वचा रोगों के सामान्य लक्षण: 

-खुजली

-लालिमा

-रक्तसाव

-पूयस्राव

-सूखापन

-दर्द

-जलन एवं त्वचा का रंग बदलने लगना है।

-सामान्यत्या त्वचा के रोगी को मानसिक रूप से तैयार होना होता है कि उन्हें  लंबे समय तक औषधि सेवन की सलाह दी जायेगी।

-साबुन का उपयोग कम से कम करना

-अधिक समय तक धूप में ना बैठना ।

किसी भी अंग्रेजी दवा का उपयोग चिकित्सक सलाह के बगैर नही करना चाहिये।

-अत्यधिक गर्म और चीजों का सेवन न करना । अधिक दिनो तक एक ही कपड़ा विशेष रूप से नायलान वस्त्रों का अधिक उपयोग करने से बचना।

शरीर पर लंबे समय तक पसीना जमा करना । मुख्य रूप से बच्चों को धूल मिट्टी में खेलने देना। एवं विशेष रूप से विरुद्ध आहार विहार का सेवन अर्थात विपरीत प्रकृति का भोजन करना उदाहरण के तौर पर मछली और दूध इत्यादि।

उपरोक्त बातों का ध्यान रखे :-

-अपने शरीर पर नियमित रूप से नारियल का तेल का उपयोग करेें!

-ऐसे स्थान पर रहने का प्रबंध करें जहां पर वायु का संचार उचित मात्रा में हो

-शीतल एवं पेय पदार्थों का सेवन लाभकारी होता है सामान्यतः नीम मूली गंधक तत्व गौमूत्र हल्दी पालक शहद पुदीना और अजवाइन का उपयोग भरपूर मात्रा में कर सकते है।

उपरोक्त लेख डॉ प्रदीप कुमार गुप्ता द्वारा आयुष दर्पण के सुधि पाठको के लिये लिखा गया है।डॉ प्रदीप कुमार गुप्ता 30 वर्षो से अधिक के अनुभवी वरिष्ठ चिकित्सक हैं तथा वर्तमान में आयुर्वेद संकाय ,उत्तराखंड आयुर्वेद विश्विद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर सेवाएं दे रहे हैं।

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