आयुष दर्पण

स्वास्थ्य पत्रिका ayushdarpan.com

जानें क्यूँ है इस वनस्पति का नाम ‘गजकेशरी’

Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

एरंड का पौधा आठ से पंद्रह फुट लंबा होता है। इसकी पत्तियों के विशेष आकार के कारण इसे “गन्धर्वहस्त” के नाम से भी जाना जाता है। चाहे इसके बीज हों या पत्तियां, और तो और इसकी जड़ों का भी औषधीय प्रयोग होता आया है। आइए इसके कुछ औषधीय प्रयोगों को जानें….

  • – पांच मिली एरंड की जड़ के रस को पीने से पीलिया यानी कामला (जौंडिस) में लाभ मिलता है।
  • – गर्भिणी स्त्री को सुखपूर्वक प्रसव कराने के लिए आठवें महीने के बाद पंद्रह दिनों के अंतर पर दस मिली एरंड का तेल पिलाना चाहिए और ठीक प्रसव के समय पच्चीस से तीस मिली केस्टर आयल को दूध के साथ देने से शीघ्र प्रसव होता है।
  • -एरंड के पत्तों के 5 मिली रस को और समान मात्रा में घृतकुमारी स्वरस को मिलाकर यकृत व प्लीहा के रोगों में लाभ होता है।
  • -फिशर (परिकर्तिका ) के रोग में रोगी को एरंड के तेल को पिलाना फायदेमंद होता है।
  • -साइटिका से पीड़ित रोगी में एरंड के बीजों की गिरी को दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ पकाकर हल्का शक्कर डाल खीर जैसा बनाकर खिलाने मात्र से लाभ मिलता है।
  • -एरंड के बीजों को पीसकर लेप सा बनाकर जोड़ों में लगाने से गठिया (आर्थराइटिस) में बड़ा लाभ मिलता है।
  • – एरंड की जड़ को दस से बीस ग्राम की मात्रा में लेकर आधा लीटर पानी में खुले बर्तन में उबालकर चतुर्थांश शेष रहने पर काढा बनाकर,रोगी को चिकित्सक के निर्देशन में खाली पेट पिलाने से त्वचा रोगों में लाभ मिलता है।
  • – किसी भी प्रकार के सूजन में इसके पत्तों को गरम कर उस स्थान पर बाँधने मात्र से सूजन कम हो जाती है।
  • – पुराने और ठीक न हो रहे घाव पर इसके पत्तों को पीसकर लगाने से व्रण (घाव ) ठीक हो जाता है।
  •  -एरंड के तेल का कल्प (कम मात्रा से प्रारम्भ करते हुए चिकित्सक के निर्देशन में उच्च मात्रा फिर उसे क्रम से घटाना) वात रोगों की श्रेष्ठ चिकित्सा है,जिसे कल्प चिकित्सा के नाम से जाना जाता है।
  • -एरंड के तेल का प्रयोग ब्रेस्ट मसाज आयल के रूप में स्तनों को उभारने में भी किया जाता है। साथ ही स्तन शोथ में इसके बीजों की गिरी को सिरके में एक साथ पीसकर लगाने से सूजन में लाभ मिलता है।
  • -प्रसूता स्त्री में जब दूध न आ रहा हो या स्तनों में गाँठ पड़ गयी हो तो आधा किलो एरंड के पत्तों को लगभग दस लीटर पानी में एक घंटे तक उबालें। अब इस प्रकार प्राप्त हल्के गरम पानी को धार के रूप में स्तनों पर डालें तथा लगातार एरंड तेल की मालिश करें और शेष बचे पत्तों की पुलटीश को गाँठ वाले स्थान पर बाँध दें। गांठें कम होना प्रारम्भ हो जाएंगी तथा स्तनों से पुन: दूध आने लगेगा।
  • -यदि रोगी पेट दर्द से पीड़ित हो तो उसे रात में सोने से पहले एक ग्लास गुनगुने पानी में एक नींबू का रस निचोड़कर और साथ साथ दो चम्मच एरंड तेल डालकर पिला दें ,निश्चित लाभ मिलेगा।
  • -कोलाईटीस के रोगी को यदि मल के साथ म्यूकस एवं खून आ रहा हो तो शुरुआत में ही एरंड को चिकित्सक  के परामर्श से देने से लाभ मिलता है।
  • -यदि छोटे-छोटे तिल हों तो इसके पत्तियों की डंठल पर थोड़ा चूना लगाकर तिल पर घिसते रहने से तिल निकल जाता है।
  • – यदि रोगी को अफारा (पेट में वायु ) बन रहा हो तो एरंड तेल के पांच से दस मिली की मात्रा, मुलेठी चूर्ण की पांच से दस ग्राम की मात्रा में देने से लाभ मिलता है I

ये तो इसके कुछ गुणों का संक्षिप्त परिचय मात्र है, आयुर्वेद के ग्रंथों में इसे सिंह की संज्ञा दी गई है, जिसकी दहाड़ से रोग रूपी हाथी भी घबरा जाते हैं।

About The Author

Facebooktwitterrssyoutube
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

©2025 AyushDarpan.Com | All Rights Reserved.