आयुष दर्पण

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रहें जागरूक और बचें ‘कोलाईटीस’ से!

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जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करना हर व्यक्ति की चाहत होती है।लेकिन कुछ लोगों के लिये जीवन की राह रोगों के कारण एक कठिन डगर सी प्रतीत होती है। ‘हर व्यक्ति के लिये जीवन का हर एक दिन नया और कुछ करने का होता है,पर काश सचमुच सभी के लिये ऐसा हो पाता! चिकित्सक को हमेशा रोगी के कष्ट को स्वयं में अनुभव कर सकने की क्षमतावान होना चाहिये ताकि वह रोगी के कष्ट को दूर करने के श्रेस्ठ साधनों का चयन कर सके।मैंने अपने सोलह वर्ष की अल्प अवधि में मध्य भारत से लेकर हिमालय क्षेत्र तक दी गयी अपनी सेवा के दौरान अनेकों ऐसे रोगी देखे जिनके लिये जीवन का प्रत्येक दिन एक कष्टप्रद एहसास को लेकर प्रकट होता था।रमेश,उम्र 32 वर्ष,निवासी नैनीताल तो महज एक उदाहरण है जिसने महज अपनी फ़ौज कीं नौकरी केवल अपनी बीमारी से तंग आकर छोड़ दी थी।ऐसे अनेक रोगीयों के दुखों को मैंने करीब से अनुभव किया है।हाँ,मैं यह दावे के साथ तो नहीं कह सकता कि मैंने ऐसे रोगीयो  को शतप्रतिशत रूप से ठीक करने में सफलता पायी है लेकिन इतना तो तय है कि आयुर्वेद की चिकित्सा ने कईयों की जीवनशैली को  आश्चर्यजनक रूप से परिवर्तित कर दिया I   ऐसी ही एक बीमारी की चर्चा हम  आज आपके समक्ष करने जा रहे  हैं  जिसे आधुनिक चिकित्सक ‘कोलाईटीस’ नाम देते हैं।यूँ तो चिकित्सा विज्ञान की भाषा में ‘आइटिस’ प्रत्यय का मतलब सूजन से है और ‘कोलोन’ का अर्थ बड़ी आंत से है।अर्थात बड़ी आंत में होनेवाली सूजन का ही चिकित्सकीय नाम कोलाईटीस है।आयुर्वेद चिकित्सा में संरचनागत विकृति अनुसार इसे ‘ग्रहणी’ नाम दिया गया है। चिकित्सकों के मध्य अक्सर इस बात को लेकर चर्चा होती है कि घर का सामन्जस्य एवं नियंत्रण ‘गृहणी’ से होता है और ठीक इसी प्रकार आहार के पाचन में ‘ग्रहणी ‘की भूमिका होती है।आयुर्वेद शास्त्र 6ठी पितधराकला के निवास स्थान को ग्रहणी मानती है जिसे आमाशय एवं पक्वाशय के मध्य माना गया है (सन्दर्भ: सुश्रुत उत्तर तंत्र) Iआधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार यह बड़ी आंत (कोलोन) में आयी एक सूजन है।

आईये अब हम थोड़ी जानकारी बड़ी आंत के बारे में लें:
‘कोलोन’ यानि बड़ी आंत एक मांसगत खोखली ट्यूब के समान रचना है जो पाचन उपरान्त बचे हुए अवशेषी उत्सर्जी पदार्थों को इकट्ठा कर रखती है तथा इसमें से जलीयांश एवं इलेक्ट्रोलाइट्स जैसे उपयोगी पदार्थों को पुनः अवशोषित कर बाँकी बचे पदार्थ को मल के रूप में गुदा से उत्सर्जित कर देती है।यह ‘कोलोन’ उदरगुहा में स्थित होती है।इसकी आतंरिक दीवार श्लेष्मिक झिल्ली (म्यूकोसा) से बनी होती है जो पाचनोपरान्त बचे उत्सर्जी पदार्थ के साथ सीधे संपर्क में होती है।यही झिल्ली जलीयांश एवं इलेक्ट्रोलाइट्स को अंदर स्थित सबम्यूकोसल झिल्ली में स्थित खून की नलीयों द्वारा अवशोषित कर लेती है।सबम्यूकोसल झिल्ली के चारों ऒर सर्कुलर मांसपेशियों का एक स्तर होता है जिसके चारों ओर लंबवत मांसपेशियों का एक और स्तर होता है।ये मांसपेशियां एक साथ क्रमिक रूप से कार्य करती हैं जिनसे पूरे ‘कोलोन’ में स्थित द्रवीभूत उत्सर्जी पदार्थ को एक प्रकार से निचोड़ा जाता है एवं जलीयांश को पुनः अवशोषित कर लिया जाता है।
‘कोलोन’ का प्रारम्भ उदर के दाहिने निचले चतुर्थ हिस्से से होता है जहां छोटी आंत का अंतिम हिस्सा जिसे’ टर्मिनल-इलीयम’ कहा जाता है ‘सीकम’ से जुड़ता है।अर्थात ‘सीकम ‘ कोलोन का पहला भाग है।
images%20(1).jpgइसी से ‘एपेंडिक्स’ जुड़ा होता है।इसके बाद यह ऊपर दाहिनी ओर निचले हिस्से से ऊपरी हिस्से(लीवर) तक ‘एसेंडिंग- कोलोन’ के रूप में एवं पुनः एक तीव्र बायीं मोड़ लेकर ‘ट्रांसवर्स-कोलोन’ तथा तिल्ली (स्प्लीन)के निकट से पुनः नीचे आते हुए ‘डेसेंडिंग-कोलोन’ के रूप में आता है,जब यह नीचे ‘पेल्विस’ में पहुंचता है तो ‘सिगमोइड -कोलोन’ के नाम से जाना जाता है।इसका अंतिम कुछ सेंटीमीटर हिस्सा ‘रेक्टम’ के नाम से एवं अंतिम द्वार ‘गुदा’ यानी ‘एनस’ कहलाता है।
आईये अब जानें ‘कोलाईटीस’ क्या है और किन लक्षणों एवं चिन्हों से इसे पहचाना जा सकता है?
‘कोलोन’ की आतंरिक स्तर में उत्पन्न सूजन की अवस्था जिस कारण व्यक्ति *पेट दर्द,खूनी आंवयुक्त दस्त,बार-बार शौच जाने की प्रवृति जैसे लक्षणों से दो चार होता है।
*रोगी में कई बार सूजन के कारण बुखार,थकान,कमजोरी जैसे लक्षण भी उत्पन्न हो जाते हैं।
*रोगी में वजन कम होना,पेट के ख़ास हिस्से को दबाने पर दर्द होना,शौच जाने की प्रवृति में परिवर्तन आना (बार-बार शौच जाने की प्रवृति),पेट फूलना,मल में खून(ओकल्ट ब्लड) आना आदि के द्वारा भी इसे डायग्नोज किया जा सकता है।
चिकित्सक इसे रोगी की पूर्व की मेडिकल हिस्ट्री,भौतिक परीक्षणों एवं प्रयोगशालीय जांचों जैसे :सीबीसी,स्टूल कल्चर एवं सेंसिटिविटी,स्टूल ओवा एन्ड सिस्टस आफ परासाइट्स  एवं एब्डॉमिनल कंप्यूटेडटोमोग्राफी,एब्डॉमिनल एक्स-रे,सिगमोइडोस्कोपी,कोलोनोस्कोपी आदि द्वारा करते हैं।
*कोलाईटीस के क्या कारण होते हैं?
कोलाईटीस के विभिन्न कारणों में सबसे प्रमुख कारण संक्रमणजन्य है
1.संक्रमणजन्य कारण : हमारे कोलोन में अनेक जीवाणु निवास करते हैं।ये हमारे शरीर से सामंजस्य बनाये रखते है एवं मित्रवत व्यवहार करते हैं।लेकिन छोटी या बड़ी आंत में किसी विषाणु,जीवाणु या पेरासाईट का हुआ संक्रमण  ‘कोलाईटीस’ का कारण बन जाता है।
सामान्य तौर पर ‘कोलोइटीस’ के लिये निम्न जीवाणुओं के संक्रमण उत्तरदायी होते है।
*केमेपेलिबेक्टर
*शिगेला
*ई.कोलाई
*यारसेनीया
*सालमोनेला
ये सभी संक्रमण दूषित भोजन के माध्यम से होते हैं।जीवाणुजन्य ‘कोलाईटीस’ का सबसे सामान्य कारण ‘क्लोस्ट्रीडीयम डेफीसेल’ होता है ।यह आमतौर पर हमारी आंत में अन्य मित्रवत व्यवहार करनेवाले जीवाणुओं के साथ सामान्य तौर पर पाया जानेवाला जीवाणु है ।लेकिन जैसे ही व्यक्ति किसी अन्य बीमारी के लिये एन्टीबायोटिक दवाओं का सेवन करता है अन्य मित्रवत जीवाणुओं के नष्ट हो जाने के कारण इसकी अचानक से संख्या में बढ़ोत्तरी हो जाती है और ‘क्लोस्ट्रीडीयम डेफीसेल’ जन्य कोलाईटीस उत्पन्न हो जाती है।मजे की बात यह है की ‘क्लोस्ट्रीडीयम डेफीसेल’ का संक्रमण टॉयलेट्स,बेडरोल्स,चिकित्सकों द्वारा प्रयोग में लाये जानेवाले स्टेथोस्कोपस आदि के संपर्क में आने से भी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हो जाता है।दुखद पहलु यह है क़ि ‘क्लोस्ट्रीडीयम डेफीसेल’ का संक्रमण कम्युनिटी एक्वायर्ड संक्रमण के रूप में बगैर किसी एन्टीबॉयटीक दवा के एक्सपोजर के तेजी से फैलता है।
यदि दुनिया भर में ‘कोलाईटीस’ के लिये सबसे सामान्य तौर पर होनेवाले किसी संक्रमण का नाम आता है तो वह है ,’ऐन्ट- अमीबाहिस्टोलाईटीका’ नामक प्रोटोजुअन परजीवी का संक्रमणयह पीने के पानी के संक्रमित होने  तथा गन्दगी के कारण एक से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।
2.आंतों में खून के बहाव में आयी कमी (इस्चीमीया):
जैसा की आप जानते है की हमारा ‘कोलोन’ एक खोखली ट्यूब के सामान की रचना है जो मांसपेशियों के विभिन्न स्तरों से निर्मित होती है।इन मांसपेशियों को सुचारू रूप से कार्य करने के लिये सामान्य एवं निर्बाध रूप से रक्तप्रवाह की आवश्यकता होती है ताकि आक्सीजन एवं अन्य पोषक तत्व मिलते रहें। जब कभी भी ‘कोलोन’ को मिलने वाले रक्त के प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है जिसे ‘इस्चीमीया’ के नाम से जाना जाता है,ऐसी स्थिति में खून की सप्लाई रुक जाने के कारण ‘कोलोन’ में सूजन उत्पन्न हो जाती है जिस कारण पेट दर्द,बुखार,दस्त(खूनी) आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
बढती उम्र,संकरी होती धमनीयां,डायबीटीज,उच्चरक्तचाप,उच्चकोलेस्टेरॉल एवं धूम्रपान स्थिति को और अधिक जटिल बना देते हैं।
इस्चीमीया के लिये लो-ब्लड-प्रेसर ,एनीमीया आदि भी सहायक कारण होते हैं।इसके अलावा मेकेनिकल अवरोध जैसे आँतों का मुड़ या उलझ जाना (वाल्व्यूलस/हरनीयेशन) भी इसके लिये जिम्मेदार होते हैं।
3.इन्फ्लेमेटरी बाउल डीजीज:इसके अंतर्गत अल्सरेटिव कोलाईटीस एवं क्रोहन्स् डीजीज आते हैं।
अल्सरेटिव कोलाईटीस हमेशा रेक्टम से प्रारम्भ होकर पूरे कोलोन में फ़ैल जाता है।इसे आटोएम्युन-डीजीज  के रूप में जाना जाता है जिसमें पेट दर्द,खूनी दस्त एवं अतिसार जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं।
क्रोहन्स डीजीज आंत्रनली में कहीं भी हो सकता है इसमें आहारनाल,आमाशय,छोटी आंत एवं कोलोन में विकृतियां(स्किप लेजन्स) उत्पन्न हो जाती हैं।इनके अलावा माइक्रोस्कोपिक कोलाईटीस एवं बच्चों में होनेवाली एलर्जिक कोलाईटीस प्रमुख हैं जो खासकर स्तनपान कर रहे शिशुओं में पायी जाती है।
आईये अब ये जानें की ‘कोलोन’ में सूजन क्यूँ और कैसे उत्पन्न हो जाती है?
‘कोलोन’ में आई सूजन मांसपेशियों के स्तरों पर रुक रुक कर ‘स्पाज्म’यानि संकुचन उत्पन्न करती है जिससे आँतों में ऐंठन या मरोड़ जिसे कोलिक पेन कहा जाता है उत्पन्न होता है।यह दर्द विशेषकर पेट के निचले हिस्से में उत्पन्न होता हैलेकिन इसे धीरे-धीरे  हर हिस्से में महसूस किया जा सकता है।चूँकि ‘कोलोन’ की मांसपेशियां सामान्यरूप से आँकुचन और प्रसारण नहीं कर पाती हैं जिस कारण ‘कोलोन’ में मौजूद अवशिष्ट पदार्थ तेजी से आगे बढ़ते हैं और जलीयांश के अवशोषण के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है फलस्वरूप जलीयांशयुक्त मल डायरिया के रूप में बाहर निकलता है।यदि ‘कोलोन’ की दीवार की लाइनिंग सूजन के कारण टूटती है तो रक्तस्राव होने लगता है जो सामान्यतया ‘अल्सरेटिव-कोलाईटीस’ की स्थिति में रक्तस्राव का कारण बन जाता है।कोलाईटीस से  यदि ‘रेक्टम’ एवं ‘सिगमोइड-कोलोन’ भी प्रभावित हुए हों तो दस्त आने के बाद दर्द कम हो जाता है लेकिन पुनः अगले दस्त से पहले दर्द बढ़ जाता है।
‘कोलाईटीस’ के कारणों के आधार पर शरीर के अन्य अंगों की संलिप्तता के कारण शरीर अलग-अलग लक्षण जैसे: बुखार,थकान,डी-हायड्रेशन,हल्का सिरदर्द,मूत्र उत्सर्जन में कमी जैसे लक्षण उत्पन्न करता है।’अल्सरेटिव-कोलाईटीस’ एक आटोएम्युनडीजीज होने के कारण यह ‘कोलोन’ के बाहर के लक्षण जैसे:जोड़ों में सूजन,आँखों में सूजन,मुँह में छाले,त्वचा में सूजन (पायोडर्मा गेन्ग्रेनोसम) जैसी स्थितियां उत्पन्न करता है।
आयुर्वेद अनुसार ‘अर्श-अतिसार-ग्रहणी’ तीनों रोग परस्पर सम्बंधित हैं एवं इनकी उत्पत्ति में अग्नि का मंद होना मूल कारण है।आयुर्वेद शास्त्र चरक संहिता चिकित्सा स्थान अध्याय 15 के 52वें सूत्र अनुसार मंदाग्नि द्वारा विदग्ध आहार नीचे के मार्ग की ओर जब पके हुए या कच्चे मल के रूप में प्रवृत होता है और ‘ग्रहणी’ रोग को उत्पन्न करता है ।अर्थात दूषित हुई जठराग्नि खाये हुए हल्के अन्न का भी उचित रूप से पाचन नहीं कर पाती है और यही अपक्व अन्न ‘शुक्त’ में बदल जाता है जो विष के सामान होता है ।
आचार्य सुश्रुत ने भी इसे उत्तर तंत्र अध्याय 40 में निम्न रूप में समझाया है कि अतिसार ठीक हो जाने के बाद भी यदि रोगी लगातार अपथ्य का सेवन करता है तो उसकी कमजोर अग्नि वातादि दोषों से विकृत होकर ‘ग्रहणी’ कोविकृत कर देती है इस प्रकार प्रकुपितवातादि दोष में से कोई एक,दो या तीनों विकृत हुई ‘ग्रहणी’ में पाचन हेतु आये हुए पदार्थ  को आमावस्था याकभी-कभी पक्वावस्था में अनेक बार त्यागती है ,जिस कारण मल दुर्गंधित कभी बंधा हुआ तो कभी द्रवयुक्त बार-बार पीड़ा के साथ बाहर निकलता है।
*कोलाईटीस से पीड़ित रोगियों के लिये चिकित्सकीय परामर्श नितांत आवश्यक है:कोलाईटीस’  के रोगियों में अतिसार एक सामान्य लक्षण के रूप में उत्पन्न होता है जिसे पथ्य आहार,फ़्ल्युड डायट,सपोर्टिव केयर आदि की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है,लेकिन जब यह तीन सप्ताह से अधिक  एवं खून के साथ हो रहा हो तो चिकित्सक से परामर्श लेना अत्यंत आवश्यक है।खून युक्त मल आना हमेशा परीक्षण योग्य समस्या है जिसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए,यह पाईल्स,डायवर्टीकुलाईटीस,कोलोन पोलीप्स एवं ऐनल फ़िस्सर जैसी स्थितियों में भी देखा जाता है।
‘कोलाईटीस’ की आयुर्वेदिक चिकित्सा के महत्वपूर्ण पहलू: आयुर्वेद शास्त्र में वर्णित मंदाग्निजन्य विकारों में अर्श-अतिसार -एवं ग्रहणी को प्रमुख माना गया है,एवं अग्नि की चिकित्सा के लिये किये गये उपक्रमों के बड़े ही लाभकारी प्रभाव देखे गये हैं।इनमें दीपन औषधियों एवं लघु अन्न के प्रयोग का विशेष महत्व है।
पंचकर्म चिकित्सा अंतर्गत ‘क्षीर-बस्ति’ का प्रयोग काफी लाभकारी है।
दीपन,ग्राही एवं लघु होने के कारण ‘तक्र’ यानि ताजा मठठा/छांछ  इसमें उत्तम लाभकारी प्रभाव से युक्त माना गया है तथा ‘तक्र-कल्प’ चिकित्सा को चिकित्सपयोगी माना गया है।चिकित्सक के निर्देशन में चित्रकादि गुटिका,पंचकोल चूर्ण,कुटजचूर्ण,बिल्व चूर्ण,शिवाक्षार पाचन चूर्ण,कुटजघनवटी ,नागराद्य चूर्ण,मधुकासव,क्षारगुटिका आदि शास्त्रीय योगों का प्रयोग दोष-दूष्य कल्पना अनुसार चिकित्सक के परामर्श उपरान्त ही किया जाना उचित है।
इस रोग में अग्नि का परीक्षण करते हुए मंदाग्नि,विषमग्नि एवं तीक्ष्णग्नि (भस्मक रोग) जैसी स्थितियों का आंकलन करते हुए चिकित्सा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
‘ग्रहणी’ की चिकित्सा में पथ्य एवं अपथ्य का विशेष महत्व है।पथ्य एवं अपथ्य को एक साथ मिलाकर भोजन करना अर्थात ‘समशन’ मात्रा से अधिक या कम अथवा निश्चित काल से पूर्व या बाद में किये आहार यानि ‘विषमशन’ तथा पहले ग्रहण किये हुए भोजन के पचने से पूर्व ही पुनः भोजन कर लेना ‘अध्यशन’ की प्रवृति से बचना चाहिए।
इसके अतिरिक्त साफ़-सफाई, विशेषकर विसंक्रमित जल एवं खान-पान का प्रयोग संक्रमणजन्य ‘कोलाईटीस’ से बचाव के लिये आवश्यक है।
*नोट:इस लेख में वर्णित जानकारी का उद्देश्य जनसामान्य को ‘कोलाईटीस’ रोग की जानकारी प्रदान कर स्वछता के प्रति जागरूक करना है ताकि संक्रमणजन्य रोगों पर साफ़-सफाई की मदद से ही लगाम लगाई जा सके। लेख में वर्णित जांच,उपचार एवं औषधियों आदि का प्रयोग उचित चिकित्सक के निर्देशन में ही  लिया जाना चाहिए। 

 

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8 thoughts on “रहें जागरूक और बचें ‘कोलाईटीस’ से!

  1. dear sir mujhe bhi colotis ke same problem he or mene ultrasound bhi karaya to doctor ne bola ki aant me sujan he or gurde me pathri bhi he
    me ye janna chahta hu ki ultrasound se ye bat clear ho gayi ki mujhe or koi gambhir samasya to nahi he please batao

  2. मैं पिछले 1- 1.5 बर्ष से इस colitis या संग्रहणी बीमारी से पीड़ित हूँ। और लगभग 1 बर्ष के अन्दर 15 किलो बजन भी कम हुआ हैं। सभी उपचार करा चूका हूँ। थोडा बहुत फायदा हो जाता है पर फिर वही समस्या उत्पन्न हो जाती है। जो आपने ऊपर लक्षण बताये है बे सभी मेरे साथ होते है इसी कारण मैं अपनी duty से भी absent चल रहा हूँ। बहुत जादा परेसान हूँ। कृपया कर सुझाब दे की मैं क्या करू। और अपना सम्पर्क सूत्र भी दे ।

  3. Dr. साहब में पिछले 1 साल से आंतो के रोग से पीड़ित हूँ।शायद संग्रहणी रोग ही है। हर तरह का इलाज करा चूका हूँ। पिछले 1 साल से लगातार इलाज करा रहा हूँ। लेकिन कुछ फायदा नहीं होता। पता ही नहीं चलता के ये हो क्या रहा है मेरे साथ। कभी दस्त तो कभी बहुत जादा गैस तो कभी पेट मे गुड़गुड़ा हट होती रहती है। और हर समय ऐसा महसूस होता रहता है की जैसे शौच आएगी। और पिछले 1 साल के अन्दर लगभग 18 kg बजन भी कम हो गया है। मै बहुत परेसान हूँ। कृपया कर मार्गदर्शन करे।

  4. Mai pichhale kai saalo se colitis se grasth hu aur upchar bhi chal raha hai. Par ye janana chahta hu ki kya ye puri tarah thik ho sakta h ya phir koi aur upay ho to krupa karke mujhe jarur bataye.

  5. me 4-5 salo se ulcerative colitis se bhut presan hu mene 4 salo tk english (alopathy) dvai li thi..ab 1 sal se ayurvedik dvai le rha hu …fir bhi koi sudhar nhi ho rha h…mal me rojana khun (खूनी आंवयुक्त दस्त) hota h wait bhi kafi km ho gya h..bhukhar rhta h …kamjori bhut h…please help me

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