यम-नियमों के पालन के बिना अधूरा है योग अभ्यास
1 min readआज अंतराष्ट्रीय योग दिवस है और आज पूरी दुनिया एक साथ योग करेगी यह योग के पूरी दुनिया में एक मान्यता मिलने का एक सुखद पहलू है लेकिन शायद सामान्य व्यक्ति यह शायद ही जानता हो कि योग आयुर्वेद के सद्वृत्त का ही एक हिस्सा है।आज सरकार भी इस कार्यक्रम को धूमधाम से मनाने की व्यापक तैयारी कर रही है और योग के कुछ स्टेंडर्ड प्रोटोकोल दिये गये हैं जिसमे निर्धारित आसन और प्राणायाम लोगों को एक साथ समूह में करने होंगे।लेकिन क्या इतने मात्र के प्रचार प्रसार से लोगों को स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।एक सामान्य व्यक्ति जो उन चुनिंदा आसनों एवं प्राणायाम को करेगा उसे शायद ही यह मालूम हो कि यह अष्टांग योग के यम, नियम,आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान एवं समाधि का एक छोटा हिस्सा है।बिना यम,नियम पालन किये आसनों एवं प्राणायाम की उपयोगिता शून्य है।लोगों को आसन एवं प्राणायाम करने के अलावा अहिंसा,सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिये। यम शब्द से भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए,मृत्यु के देवता को भी यम कहते हैं, यहाँ उस यम से कोई तात्पर्य नहीं है यहाँ तो उपरोक्त पाँच व्रतों की एक संज्ञा नियत करके उसका नाम यम रखा गया है ।
अहिंसा
साधारण रीति से दुःख न देने को अहिंसा कहते हैं । अहिंसा का अर्थ है मारना,दुःख देना । आ अर्थ है रहित । इस प्रकार अहिंसा का अर्थ हुआ, न मारना,न सताना, दुःख न देना । ऐसे कार्य जिनके द्वारा किसी को शारीरिक या मानसिक कष्ट पहुँचता हो हिंसा कहलाते हैं, इसलिए उनका करना अहिंसा व्रत पालन करने वाले के लिए त्याज्य है । महात्मा गाँधी के मतानुसार-कुविचार मात्र हिंसा है, उतावलापन हिंसा है, मिथ्याभाषण हिंसा है,द्वेष हिंसा है, किसी का बुरा चाहना हिंसा है, जिसकी दुनिया को जरूरत है उस पर कब्जा रखना भी हिंसा है, इसके अतिरिक्त किसी को मारना,कटुवचन बोलना, दिल दुःखाना, कष्ट देना तो हिंसा है ही इन सबसे बचना अहिंसा पालन कहा जायेगा।
सत्य
मोटे तौर से जो बात जैसी सुनी है उसे वैसी ही कहना सत्य कहा जाता है । किन्तु सत्य की यह परिभाषा बहुत ही अपूर्ण और असमाधानकारक है । सत्य एक अत्यन्त विस्तीर्ण और व्यापक तत्व है । वह सृष्टि निर्माण के आधार स्तम्भों में सब से प्रधान है । सत्य भाषण उस महान सत्य का एक अत्यन्त छोटा अणु है, इतना छोटा जितना समुद्र के मुकाबले में पानी की एक बूँद।
अस्तेय
चोरी न करना अस्तेय को यही संक्षिप्त अर्थ है, पराई चीज को बिना उसकी आज्ञा के गुप्त रूप से ले लेने को चोरी कहते हैं । दूसरे की कमाई का अनुचित रूप से अपहरण करना चोरी है,जिस वस्तु पर न्यायतःअपना स्वत्व नहीं है उसे उसके स्वामी की बिना जानकारी में या बलात्कारपूर्वक ले लेना स्तेय है, इससे बचना अस्तेय कहा जायेगा ।
ब्रह्मचर्य
आमतौर से ब्रह्मचर्य का अर्थ वीर्य पात न करना समझ जाता है । जो व्यक्ति स्त्री सम्पर्क से बचते हैं, उन्हें ब्रह्मचारी कहा जाता है । यह आधा अर्थ हुआ, आधा अभी शेष है । ब्रह्म का अर्थ है परमात्मा में आचरण करना जीवन लक्ष में तन्मय हो जाना, सत्य की शोध में सब ओर चित्त हटाकर जुट पड़ना, ब्रह्म का ही आचरण है । इसके साधनों में वीयर्पात न करना भी एक है ।
महात्मा गाँधी ने इस सम्बन्ध में बहुत ही उत्तम कहा है-ब्रह्मचर्य का मूल अर्थ सब याद रखें । ब्रह्मचर्य अर्थात ब्रह्म की-सत्य की शोध में चर्या अर्थात तत्सम्बन्धी आचार ।इस मूल अर्थ से सर्वेईन्द्रिय संयम का विशेष अर्थ निकलता है सिर्फ जननेन्द्रिय संयम के अधूरे अर्थ को तो हम भुला ही दें । जननेन्द्रिय निरोध को ही ब्रह्मचर्य का पालन माना गया है । मेरी राय में यह अधूरी और खोटी व्याख्या है । विषय मात्र का निरोध ही ब्रह्मचर्य है । जो और इन्द्रियों को जहाँ तहाँ भटकने देकर केवल एक ही इन्द्री को रोकने का प्रयत्न करता है, वह निष्फल प्रयत्न करता है । कान से विकार की बातें सुनना, आँख से विकार उत्पन्न करने वाली वस्तु देखना, जीभ से विकारोत्तेजक वस्तु चखना, हाथ से विकारों को भड़काने वाली चीज को छूना और साथ ही जननेन्द्रिय को रोकने का प्रयत्न करना, यह तो आग में हाथ डालकर जलने से बचने का प्रयत्न करने के समान हुआ । इसीलिए जो जननेन्द्रिय को रोकने को निश्चय करे उसे पहल ही से प्रयत्न इन्द्री को उस इन्द्रियों के विकारों से रोकने का निश्चय कर ही लिया जाना चाहिए ।
अपरिग्रह का अर्थ है किसी भी विचार, व्यक्ति या वस्तु के प्रति आसक्ति नहीं रखना या मोह नहीं रखना ही अपरिग्रह है। जो व्यक्ति निरपेक्ष भाव से जीता है वह शरीर, मन और मस्तिष्क के आधे से ज्यादा संकट को दूर भगा देता है। जब व्यक्ति किसी से मोह रखता है तो मोह रखने की आदत के चलते यह मोह चिंता में बदल जाता है और चिंता से सभी तरह की समस्याओं का जन्म होने लगता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार 70 प्रतिशत से अधिक रोग व्यक्ति की खराब मानसिकता के कारण होते हैं। योग मानता है कि रोगों की उत्पत्ति की शुरुआत मन और मस्तिष्क में ही होती है। यही जानकर योग सर्वप्रथम यम और नियम द्वारा व्यक्ति के मन और मस्तिष्क को ही ठीक करने की सलाह देता है।
इसी प्रकार नियमों का पालन अर्थात्: पाँच व्यक्तिगत नैतिकता
(क) *शौच* – शरीर और मन की शुद्धि
(ख) *संतोष* – संतुष्ट और प्रसन्न रहना
(ग) *तप* – स्वयं से अनुशाषित रहना
(घ) *स्वाध्याय* – आत्मचिंतन करना
(च) *ईश्वर-प्रणिधान* – इश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा
अतः मेरा यह मानना है कि आसनों एवं प्राणायाम को करने से पूर्व यदि व्यक्ति यम एवं नियमों का पालन नही करता है तो उसे योग से पूर्ण स्वास्थ्य लाभ नही मिल सकता है।अतः जिस प्रकार से सामूहिक रूप से अंतराष्ट्रीय योग दिवस पर लोगों को चुनिंदा आसनों एवं प्राणायाम का अभ्यास कराया जाएगा उससे पूर्व की तैयारियों में यम एवं नियमों के पालन की जानकारी भी दी जानी चाहिये थी।
*डॉ नवीन जोशी*
एम् .डी. आयुर्वेद,पीजीडिप.इन योगिक साइंसेज
परामर्शदाता चिकित्सक
उत्तराखंड आयु.विश्विद्यालय,देहरादून
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