आयुष दर्पण

स्वास्थ्य पत्रिका ayushdarpan.com

आईये जानें क्या है शिरोधारा

1 min read
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

1000435_10151612928234735_154806_nशिर पर किसी भी प्रकार की औषधियुक्त काढ़े,घी,तैल इत्यादि को विशेष प्रकार से गिराना शिरोधारा कहलाता है इसे शिरः सेक भी कहते हैं।
चरक एवं सुश्रुत संहिता में विभिन्न रोगों में शिरः सेक करना निर्देशित किया है।
लेकिन मूल रूप से विधि का विशिष्ट वर्णन *धारा कल्प* नामक ग्रंथ में मिलता है।
कैसे करें शिरोधारा
शिरोधारा करने के लिये एक विशिष्ट प्रकार के पात्र जिसे धारा पात्र कहते हैं को लेना आवश्यक है।
यह धारा पात्र चौड़े मुहं वाला 5 से 6 इंच गहराई लिये हुए होना चाहिये जिसमे लगभग 2 लीटर तक द्रव भरा जा सके ।यह किसी काठ से बना पात्र या धातु से बना पात्र हो सकता है।धारा कल्प में सोने,लोहे और मिट्टी को मिलाकर पात्र बनाये जाने का निर्देश है।इसके तलहटी पर कनिष्टिका अंगुली के प्रमाण का एक छिद्र बना दें जिसमे तेल को बराबर मात्रा में गिराने के उद्देश्य से एक वर्ति लगा दें।
अब जिस रोगी की शिरोधारा करनी हो उसे धारा टेबल या द्रोणी में लिटाये जिसमे उसका सिर उस ऒर हो जहाँ विशेष रूप से एक काष्ठ की पट्टी लगाई गयी हो जिसके ऊपर तकिया रखकर शिर को हल्का ऊपर (elevate) कर रखा जा सके जिससे गिरती हुई धारा का द्रव नीचे इकट्ठा हो और पुनः उपयोग में लाया जा सके।
अब शिरोधारा किये जानेवाले रोगी का सर्वांग अभ्यंग करें , रोगी के सिर के ठीक ऊपर धारा पात्र को एडजस्ट कर दें,रोगी की आँखों के ऊपर कॉटन का पैड रख दें ताकि तेल या द्रव आँखों में प्रविष्ट न होंने पाये।
अब धारापात्र में उपयुक्त द्रव को भर दें,
इस विधि के लिये दो पंचकर्म सहायक आवश्यक होने चाहिये।एक सहायक रोगीके शिर की ऒर ठीक बीच में खड़ा हो जो धारा पात्र को हाथ से पकड़ uniformly oscillate करे जिससे वर्ति से होकर धारा शिर के बीच से दोनों ओर बराबर गिरती रहे तथा नीचे बने छिद्र के माध्यम से पुनः पात्र में इकट्ठी होती रहे।
इस नीचे इकट्ठे हुये तेल को एक दूसरा सहायक पुनः धारपात्र में डालता रहे।
कौन से तेल का इस्तेमाल किया जाना चाहिये
वात दोष की अवस्था में:तिल तैल
पित्त दोष की अवस्था में:घृत
कफ दोष की अवस्था में:तिल तैल
वात एवं रक्त संसृस्ट /वात पित्त रक्त संसृस्ट होने पर तेल और घी समान मात्रा में एवं केवल कफ संसृस्ट होने पर तेल और आधा भाग घी मिला धारा करना चाहिये।
-सन्दर्भ:धारा कल्प
धारा पात्र में स्थित वर्ति से कितनी ऊंचाई से धारा गिराई जानी चाहिये
-यह चार अंगुल की ऊंचाई से गिराई जानी चाहिये
-सन्दर्भ:धारा कल्प
शिरोधारा का योग्य समय
प्रातः काल है मध्याह्न एवं रात्रि में शिरोधारा नही करनी चाहिये।
अत्यधिक मंद/अत्यधिक तीव्र/अत्यधिक उष्ण/अत्यधिक शीतल धारा गिराने से भी रोग वृद्धि हो सकती है।
शिरोधारा विधि में भी परिहार काल पीड़िछिल धारा के अनुसार ही होना चाहिये।
आजकल आधुनिक शिरोधारा यंत्र उपलब्ध हैं लेकिन पारंपरिक विधि को ही बेहतर माना गया है।
शिरोधारा हेतु वात शामक द्रव्यों का क्वाथ,दुग्ध,घी,तेल,कांजी,तक्र आदि लिया जा सकता है।
*******************************

नोट :उपरोक्त जानकारी चिकित्सकीय ज्ञान हेतु आयुष दर्पण के वेबपोर्टल पर जारी की गयी है !

Facebooktwitterrssyoutube
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

4 thoughts on “आईये जानें क्या है शिरोधारा

  1. बबलू ठाकुर पतंजलि आरोग्य केंद्र दिल्ली रोड मेरठ 98 97 60 89 28 मे says:

    ये हमारे लिए बहुत ही सोभाग्य की बात हैं की आर्युवेद की इतनी सुन्दर जानकारी आप हमें उपलब्ध करा रहे हैं में आपके द्वारा दी गयी जानकारी को अपने योग और घरेलू उपाय के ग्रुप में भेजता हूँ जो की मेरे व्हाट आप पे चल रहा हैं एक बार आपको पुनः नमन आभार ॐ

  2. आयुष दर्पण को हम उत्कृष्ट जानकारी हेतु धन्यवाद देते हे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright © 2019 AyushDarpan.Com | All rights reserved.