आयुष दर्पण

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ही हमारे भोजन का एक अभिन्न अंग सदियों से रहा है और इसके फायदे आयुर्वेद में भी वर्णित हैं Iआज मैं इसी प्रोबायोटिक पर आयी एक नयी शोध पर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहूंगा :-
सबसे पहले हमें यह जानना आवश्यक होगा कि प्रोबायोटिक क्या हैं ?
प्रोबायोटिक एक प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं, जिसके निर्माण में जीवित जीवाणु या सूक्ष्मजीव शामिल होते हैं।दही ,पनीर और चीज प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थों के उदाहरण हैं I अब आप यह तो जानते ही होंगे कि दूध से दही बनने की प्रक्रिया में ‘लेक्टोबेसिलस जीवाणु’अपनी भूमिका अदा करते हैं I
इस नयी शोध में यह जानकारी आयी है की प्रोबायोटिक दही बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं में मरकरी एवं आर्सेनिक पोइजनिंग के खतरे को कम कर देता है I इसे हम बड़े परिपेक्ष्य में दही के गुणों के रूप में भी समझ सकते हैं क्यूंकि आयुर्वेद की विशिष्ट औषधियों के निर्माण एवं अनुपान-सह्पान के रूप में दही के सेवन का निर्देश सदियों से वर्णित है Iआज मरकरी एवं आर्सेनिक वातवरण में टाक्सिनस के रूप पीने के पानी एवं भोज्य पदार्थों में सर्वथा व्याप्त हैं Iइस प्रकार के टाक्सिनस उन स्थानों में सामान्यतया देखे जाते हैं जहां खनन एवं खेती साथ-साथ होती है I यह समस्या भारत जैसे विकासशील देश में भी काफी सामान्य है क्यूंकि उद्योंगों के लिए बनाए गए नियमों का सख्ती से पालन किया जाना अभी पहेली ही बना हुआ हैI इन धातुओं की कम मात्रा में शारिरिक एक्सपोजर के कारण कैंसर एवं बच्चों में कोगनिटिव डेवलपमेंट एवं न्यूरोलोजिकल परेशानियां सामने आती हैं Iदही में पाया जानेवाला ‘लेक्टोबेसिलस जीवाणु’ (जी -आर 1) इन टाक्सिक मेटल्स के प्रभाव को न्युट्रलाइज कर देता है Iलाव्सन एंड वेस्टर्न विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर ग्रेगर रीड,जॉर्डन विश्नाज एवं मेगन एनो द्वारा किये गए शोध अध्ययन जिसमें 44 स्कूली बच्चों एवं 60 गर्भवती स्त्रियों को शामिल किया गया जो एस तरह के मेटल्स के पोइजनिंग क्षेत्र के निवासी थे Iइस शोध में यह पाया गया कि प्रोबायोटिक दही उनमें मरकरी (पारे ) से 36% एवं आर्सेनिक से 78% तक सुरक्षा प्रदान करता है I यानी दही का सेवन हमें हेवी मेटल्स के दुष्प्रभावों से बचाता है I

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