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जानें कौन हैं योग के पितामह महर्षि पतंजलि

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पूरी दुनिया 21 जून को योग दिवस मनाने की तैयारी कर रही है हर तरफ योग की चर्चा है लेकिन महर्षि पतंजलि  जिन्हें योग के प्रणेता के रूप में जाना जाता है उनकी चर्चा कम ही होती दिख रही है।आईये हम संस्कृत व्याकरण,आयुर्वेद शास्त्र एवं योगसूत्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि के बारे में जो भी जानकारी उपलब्ध है उसे जानें तथा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर उन्हें अवश्य ही याद  करें  I

संस्कृत में पतंजलि शब्द का प्रयोग एक साथ कई विद्वानों के लिए प्रयोग में आता रहा है।कुछ ऐसे ही विद्वान् जिनके लिए पतंजलि शब्द का उल्लेख हुआ है निम्न हैं:

* ईसा 200 वर्ष पूर्व की अवधि में पाणिनी की अष्टाध्यायी नामक कृति पर टीका ग्रन्थ जिसे संस्कृत व्याकरण एवं भाषा की सर्वोत्तम कृति माना जाता है एवं महाभाष्य के नाम से जाना जाता है के रचियता भी पतंजलि को ही माना जाता है ।

*योग सूत्रों को संकलित कर योग अभ्यास के रूप में दैनिक जीवन में उतारने का श्रेय जिस महर्षि को जाता है तथा जिनपर छः दर्शनों में से साख्य दर्शन का विशेष प्रभाव रहा है उन्हें भी पतंजलि के नाम से जाना गया।इन्हें कश्मीर का मूल निवासी माना गया है।

*तमिल सिद्ध परम्परा में शैव सम्प्रदाय के 18 सिद्धों में से एक पतंजलि नामक सिद्ध हुए।

*आयुर्वेद संहिताओं में भी पतंजलि के योग सूत्रों का वर्णन आता है।

*पतंजलि को काशी नगरी में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी काल का बताया जाता है इनका जन्म तत्कालीन ‘गोनिया’ नामक स्थान में हुआ था पर कालान्तर में ये काशी स्थित नागकूप नामक स्थान में बस गए थे।नागपंचमी को आज भी काशी के वासी नाग के चित्र बाँटते हैं और कहते हैं कि ‘छोटे गुरु का….बड़े गुरु का नाग ले लो भाई…’अर्थात पतंजलि को शेष नाग का अवतार माना जाता है।

*पतंजलि को रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य के रूप में भी जाना जाता है।कहा जाता है कि रसशास्त्र के अनेक धातु योग,लौह भस्में आदि इन्हीं की देन हैं।

कुछ इतिहासकार पतंजलि को ईसा पूर्व 195-142 काल का मानते हैं तथा पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल की अवधि में इन्हें प्रख्यात चिकित्सक के नाम से जाना जाता था जिन्हें राजा भोज ने तन के साथ साथ मन का चिकित्सक भी माना।
आज भी कहा जाता है:

योगेन चित्तस्य पदेन वाचा मलं शारीरस्य च वैद्यकेन्।
योsपाकरोत्तम् प्रवरम मुनीनां प्रंजलि प्रांजलिनतोsस्मि।।

अर्थात चित्त की शुद्धि के लिए योग ,वाणी की शुद्धि के लिये व्याकरण और शरीर की शुद्धि के लिये वैदयकशास्त्र के ऋषि पतंजलि को प्रणाम।

अर्थात ऋषि पतंजलि का सीधा सम्बन्ध आयुर्वेद से है।ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में संस्कृत व्याकरण के महान ग्रन्थ ‘महाभाष्य’ के रचियता पतंजलि मूल रूप से काशी के निवासी थे जिन्हें पाणिनि के बाद सर्वश्रेष्ठ व्याकरण रचनाकार ऋषि माना गया।

सीधा अर्थ यह है कि भाषा की शुद्धि के लिए व्याकरण,मन की शुद्धि के लिए योग एवं शरीर की शुद्धि के लिये आयुर्वेद के साथ महर्षि पतंजलि का नाम जुड़ा है।अतः जहां पूरी दुनिया योग को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्सव के रूप में मनाने जा रही है वहीँ इसके जनक महर्षि पतंजलि को याद करना भी उतना ही आवश्यक है।

 

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