अमृत संजीवनी है गिलोय
1 min read-गिलोय का सत्व बनाकर उसमें खस,कालावासा का फूल या इसके जड़ की क्षाल, तेजपत्ता,कूठ,आंवला,सफ़ेदमूसली,छोटीइलायची,गुलकंद,केशर,मुनक्का,नागकेशर,कमल की डंठल,कपूर,सफ़ेदचन्दन,मुलेठी,बलामूल या बीज,अनन्तमूल,वंशलोचन,छोटीपीपल,धान का लावा(खील),अश्वगंधा,शतावर,कौंच बीज,जायफल,कबाबचीनी,रससिंदूर,अभ्रकभस्म,बंगभस्म एवं लौहभस्म इन सभी को समान मात्रा में और इनके बराबर गिलोय का सत्व लेकर खरल कर लें और शीशी में भर लें,इसे मिश्री,गाय के घी एवं शहद अनुपान के साथ प्रदर,पुराने बुखार एवं हाथ पैरों में होनेवाले जलन को दूर करने हेतु दिया जा सकता है।
*उपरोक्त गिलोय के योगों का प्रयोग चिकित्सकीय निर्देशन में मात्रा,अनुपान एवं सहपान का ध्यान रखते हुए ही किया जाना चाहिये,गिलोय के अलावा प्रयुक्त अन्य औषधि द्रव्यों की उपलब्धता के आधार पर आंशिक परिवर्तन किया जा सकता है।
Ye ausadhi ka use hum kaise kare