जानें बेकार समझी जानेवाली काम की औषधि के बारे में

यूँ तो हमारे आस-पास ऐसी कई वनस्पतियाँ अनायास ही हमारा ध्यान अपनी और खींचती हैंI पर्वतीय क्षेत्रों में लोग ऐसी ही कुछ वनस्पतियों का स्वतः इस्तेमाल घरेलू औषधि के रूप में करते आये हैं I उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में भी लोग ऐसी ही एक वनस्पति की पत्तियों का इस्तेमाल स्वयं के ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में पारंपरिक रूप से करते आये हैं I ऐसी ही एक फूलों की श्रेणी में आनेवाली वनस्पति है “रतपत्तिया”इसे लेटीन में एजुजा एंटेग्रीफोलीया के नाम से जाना जाता है,इस वनस्पति के छोटे स्रब मुलायम लोम से ढंके होते हैंIइसकी पत्तियाँ चम्मच के आकार की होती हैं I यह वनस्पति 1700 मीटर की उंचाई तक कश्मीर ,भूटान ,चीन से लेकर अफगानिस्तान तक पायी जाती है Iहिमालयी क्षेत्र में भी यह छोटे स्रब के रूप में आपको अपने आसपास ही दिख जायेगी Iइस कुल की 301 प्रजातियों में से यह एक प्रजाति है ,जो अपने औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है I इसका प्रयोग काढ़े के रूप चाहे वह पुराना बुखार हो या हो दांतों में होनेवाला दर्द या फिर डायबीटीज, हर स्थिति में अपने कटु-तिक्त एवं कषाय गुणों के कारण प्रभावी साबित होती है Iयह ऐसी वनस्पति है जिसका इस्तेमाल एंटी-मलेरीयल-ड्रग के विकल्प के रूप में भी होता है I इससे बनाये गए काढ़े को रक्तचाप को नियंत्रित करने में भी उपयोगी पाया गया है Iइसकी पत्तियों को चबाने मात्र से दांतों में होनेवाला दर्द तत्काल शांत हो जाता है Iइस वनस्पति में फायटोएक्डायस्टीरोइड,इरीडोइड ग्लायकोसायड,स्टीरोल्स,विथऐनेलोयड,ब्रेकटीयोसिन ए,बी,सी,डी,टेनिन,सेराइल-एल्कोहोल,सीरोटिक एसिड,पाल्मीटिक एसिड,ओलिक एसिड,लिनोलिक एसिड,एरेबिनोज एवं फेनोलिक बिटर कम्पाउंड पाए जाते हैं I इसकी पत्तियों के स्वरस का इस्तेमाल रक्तशोधक के रूप में भी होता है Iयदि कही कट जाय या जल जाय बस इसकी पत्तियों का लेप करने मात्र से आराम मिल जाता है Iइस वनस्पति में पाया जानेवाला लीनेलायल-एसीटेट का प्रयोग परफ्यूम्स को बनाने में किया जाता है Iविभिन्न शोध अध्ययनों से यह पाया गया है कि इस वनस्पति में पाया जानेवाला 70 प्रतिशत एथेनोल-एक्सट्रेक्ट एक अच्छे सूजन एवं दर्द निवारक औषधि का काम करता है Iइसके अलावा इस वनस्पति में पाए जानेवाले तत्व को हृदय के लिए लाभकारी पाया गया हैI पारंपरिक चिकित्सा में इथीयोपीया से लेकर सेंट्रल एशिया तक लोग इसका प्रयोग किसी न किसी रूप में घरेलू चिकित्सा में करते रहे हैंI पर्वतीय क्षेत्रों में भी पुराने जानकार लोग रतपत्तिया का प्रयोग घाव,सूजन कम करने एवं स्वयं के शुगर को नियंत्रित करने में करते रहे हैंI बस आवश्यकता इन बेकार समझी जानेवाली वनस्पतियों के संरक्षण की है ताकि इनका सही इस्तेमाल हो सकेI