आयुष दर्पण

स्वास्थ्य पत्रिका ayushdarpan.com

Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

मुझे हाल ही में चर्चित फिल्म ‘पीके’ देखने का मौक़ा मिला जिसमें ‘डर’ और धर्म के पीछे के संबंधों को दर्शाया गया है ,लेकिन धर्म ही क्यूँ आज ‘डर’ से अन्य कई उद्योग चल रहे हैं जिनमें चिकित्सा उद्योग भी शामिल है Iअब मानव शरीर को ही ले लीजिये एक तरफ विज्ञान यह मानता है कि स्वस्थ शरीर में लगभग दस हजार सूक्ष्म जीवाणुओं की प्रजातियाँ निवास करती हैं और इन्हीं के गुप्त और मायावी संसार में खतरनाक सूक्ष्म जीवाणु और फंगस भी रहते हैं लेकिन ये हर स्वस्थ व्यक्ति को बीमार नहीं करते हैं अर्थात यदि शरीर में इनका सामंजस्य है तो आप स्वस्थ है और नहीं तो आप को बीमार होने से कोई नहीं रोक सकता I लुई पास्चर के नाम को आप शायद ही भूल सकते हैं जिन्होंने दुनिया के सामने सबसे पहले डर को इस रूप में बेचा कि ‘जीवाणु सबको मार सकते हैं ‘ और उन्होंने जीवाणुओं के सिद्धांत को पैदा किया और साथ ही ‘एंटीबायोटिक ‘ को भी पैदा कर दिया जिसका नाम ही कितना डरावना है एंटी – विपरीत ,बायोटिक -जिंदगी यानी जिंदगी के विपरीत जो दवा काम करे I लेकिन आज जीवनविपरीत दवा (एंटीबायोटिकस ) के 500 से अधिक मालीक्युल्स ऐसे हैं जो अस्पतालों में पैदा होने वाले जीवाणुओं पर बेअसर हैं जिन्हें ‘सुपरबग्स’ नाम दिया गया है I विचित्र बात यह है कि मनुष्य का शरीर जिनमें ये अच्छे और बुरे सूक्ष्म जीवाणु आपसी तालमेल के साथ रहते हैं उन्हें बिगाड़ने में ये ‘जीवन विपरीत’ (एंटीबायोटिकस ) दवायें बड़ी ही कारगर होती हैं I जैसे कंप्यूटर को इजाद करने के साथ ही साफ्टवेयर को नुकसान पहुँचानेवाले वायरस एवं मालवेयरस को पैदा किया गया और इनसे सुरक्षा देने हेतु एंटीवायरस को सामने लाया गया ,वैसे ही जीवाणुओं एवं एंटीबायोटिक दवाओं के मायावी संसार को बड़ी माया कमाने के ख़याल से पैदा किया गया I अमेरिका और जर्मनी जैसे देश आज नये नामों से नये-नए तरीके अपना रहे हैं मजे की बात यह है कि अब ‘फीकल-ट्रांसप्लांट’ (मलप्रत्यारोपण ) के नाम से नया ट्रीटमेंट प्रोटोकोल विकसित किया गया है ,शायद उन्हें हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की ‘स्वमूत्र चिकित्सा’ लेकर लम्बी आयु जीने से ये नया सिद्धांत मिला होगा,जबकि आयुर्वेद चिकित्सा तो पहले से ही ‘मल’ को ‘बल’ मानती रही है,चलिए देर से ही सही, बात तो समझ में आयी Iअब पश्चिमी देश भी इस बात को मानने लगे है कि मानव मूत्र में ‘केलिक्रेंनिन’ एवं ‘इम्म्युनबूस्टर’ तत्व पाए जाते हैं जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं इसलिए अब गो-मूत्र को पेटेंट कराने की बात होने लगी है I’डर’ का असर कितना खतरनाक होता है इसका एक उदाहरण आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ …यदि आपका चिकित्सक आपसे ये पूछ बैठे कि क्या आपके पिता उच्चरक्तचाप या डायबीटीज से पीड़ित थे ?और यदि आपने अपना उत्तर ‘हाँ’ में दिया तो चिकित्सक का केवल इतना कहना कि आपके भी पीड़ित होने की संभावना बनती है! यानि आप भी उच्चरक्तचाप या डायबीटीज से पीड़ित हो सकते हैं… इतना सुनने से पैदा हुआ ‘डर’ ही आपके रक्तचाप एवं शुगर को बढाने के लिए काफी है,जबकि करोड़ों लोगों में से एक व्यक्ति का इन बीमारियों से आनुवंशिक सम्बन्ध होता है I यानि ‘डर’ का सीधा सम्बन्ध आपके बीमार होने से है और ये सीधे ‘पैसे’ से जुड़ता है I यानि ‘डर’ ‘चिकित्सा’ और ‘व्यवसाय’ आपस में कड़ीयों के रूप में जुड़े हुए हैं और जब तक ये टूटेंगे नहीं मानवता नष्ट होती रहेगी Iयदि हम अपने शरीर की रचना को गौर से देखें तो यह असंख्य जीवित कोशिकाओं की एक कोलोनी है और प्रत्येक कोशिका स्वतंत्र रूप से एक जीवित इकाई है I अगर आप यह सोचते है कि मेरा शरीर बिलकुल स्वस्थ एवं सुदृढ़ है तो आप गलत सोच रहे हैं करोड़ों जीवित कोशिकाओं के इस मायावी संसार में हम हर जीवित कोशिका के स्वस्थ होने की गारंटी कैसे ले और दे सकते हैं I आज चिकित्सा उद्योग दुनिया का सबसे बड़ा उद्योग है आप जानकर आश्चर्य करेंगे कि महज ‘कोलेस्टराल’ कम करने की दवा अकेले ही दुनिया में 1.72 अरब डालर का व्यवसाय देती है जिसमें केवल एक कंपनी जो यह दवा बनाती है लगभग 15-18 करोड़ डालर का शुद्ध लाभ कमाती है I अभी हाल ही में प्रकाशित एक खबर के अनुसार ‘कोरोनरी-आर्टरी-ब्लॉक’ के अधिकाँश मरीजों में ब्लॉक हटाने के उद्देश्य डाला जानेवाला स्प्रिंग के समान स्टेंट महज गैरजरूरी और ‘डर’ की वजह से डाल दिया जाता है क्यूँकि लोगों के मन में कोरोनरी ब्लॉक से उत्पन्न डर को ‘एंजीयोप्लास्टी’ के रूप में कैश कर लिया जाता है I रक्त नलिकाओं में ब्लॉक बनना एक आम बात है और यह कोई बीमारी नहीं है और हर ब्लॉक नुकसानदायक भी नहीं होता है यह किसी भी उम्र में बनना एक सामान्य प्रक्रिया है लेकिन जो वाकई खतरनाक ब्लॉक होते है वे ‘एन्जीयोग्राम’ में दिखाई भी नहीं पड़ते और यह भी एक सच्चाई है कि ब्लॉक होने के साथ यदि हृदयाघात उत्पन्न हो तो रोगी बच भी सकता है लेकिन यदि बिना ब्लॉक के हृदयाघात उत्पन्न हुआ तो बचने की संभावना बहुत कम होती है I अब यदि किसी चिकित्सक ने किसी रोगी का ‘एन्जीयोग्राम’ किया और उसमें सामान्य ब्लॉक पाया तो वो अपने रोगी को कहेगा आप विस्फोटक ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठे हैं यह कभी भी फट सकता है अब मौत के भय से डरा हुआ व्यक्ति क्या करेगा किसी तरह से पैसे की जुगाड़ करेगा और स्टेंट डलवाएगा I मतलब यह है कि पैसे की भूख मानवता को नष्ट करने पर तुली हुई है और चिकित्सा उद्योग भी इससे अछूता नहीं है Iआज एक दवा जो ‘कोलेस्ट्रोल’ को कम करती है वह दूसरी तरफ आपके शुगर को बढ़ा कर आपको ‘डायबीटिक’ बना देती है अर्थात ‘कोलेस्ट्रोल’ कम करनेवाली दवा शुगर कम करनेवाली दवा के व्यवसाय से जुडी है,एंटीबायोटिक दवा आपके शरीर के जीवाणुओं की कोलोनी के बीच के सामंजस्य को बिगाडती है यानी एक दवा दूसरी दवा के व्यवसाय को बढाती है,जबकि चिकित्सा का पावन उद्देश्य ‘एक व्याधि को ठीक कर दूसरी व्याधि को उत्पन्न नहीं करना है ‘लेकिन आज इसके विपरीत परिणाम देखने में आ रहे हैं I व्यावसायिक हितों से पैदा किया जा रहा ‘डर’ कभी ‘स्वाइन-फ़्लू’ के नाम पर ‘टेमीफ्लू’और ‘मास्क’ की बिक्री बढ़ा रहा है तो कभी किसी और नाम से हमें डरा रहा है I बस आप डरें और हम व्यवसाय करें यही आज के चिकित्सा विज्ञान का मूल मन्त्र है I

Facebooktwitterrssyoutube
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

1 thought on “मायावी चिकित्सा संसार

  1. डां साहब मयुरकंद के बारे मे पता हो कहा मिल सकता हैं निवदेन है जानकारी चाहिए डॉक्टर नारायण दत्तश्रीमाली के पुस्तक मे जी क्र है एवं आपका वाटसएप नंबर देने की दया करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright © 2019 AyushDarpan.Com | All rights reserved.