आयुष दर्पण

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आलसियों का देश बन रहा है भारत

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आज की पीढ़ी लिखी कौम खुद को पढ़ा लिखा तो समझती है पर कहीं न कहीं वह खुद को आलसी बनाती जा रही है।जीवन की आपाधापी और होड़ में व्यक्ति इस कदर मशगूल है कि उसे पता ही नही कब उसकी कमर 36 इंच को पार कर गई और पेट टायरनुमा आकृति बनाता हुआ गर्भवती स्त्री की तरह झांकने लगा ।यह एक कड़वा सच है जिससे आज भारत दुनिया मे आलसी लोगो की दूसरे पायदान पर अपना स्थान बना रहा है।आयुर्वेद भी आरामतलवी जीवन को रोगों का कारण मानता है।आज हम योग दिवस तो जोर शोर से मनाते है पर इन दिवसों को एक दिन ‘डे’ के रूप में मना बांकि के दिन ‘लेजी डे’ मनाते हैं।आप अधिकांश लोगों से जब सवाल करें तो जवाब मिलेगा अजी फुरसत कहाँ हम बहुत बिजी हैं।यह कैसी व्यस्तता जिसमे सुबह की बेड टी से शुरुवात हो और ब्रेकफास्ट का अता पता न हो और डिनर किसी होटल में दोस्ती के साथ समाप्त हो।कहते है कि आरोग्य से बड़ा कोई धन नही और पुरुषार्थ से धन प्राप्ति के लिये ही व्यक्ति कर्म करता है पर वह पुरुषार्थ किस काम का जिसमें आलस्य की मात्रा अधिक और शारिरिक श्रम की मात्रा कम हो।ऑफीस में कुर्सी पर बैठ दिन भर मरीज देखते चिकित्सक हो,या फिर प्रशासनिक फाइलों को चाय की चुस्कियों के बीच निपटाते अधिकारी या दुकान में बैठे सामान बेच रहे साहूकार सभी के कार्यों में एक समानता है;आलस्य की मात्रा अधिक और शारीरिक श्रम की मात्रा नगण्य।परिणाम रक्त में चर्बी के स्तर का बढ़ जाना,रक्तचाप का बढ़ जाना,मधुमेह और ह्रदय रोगों की संभावना बढ़ जाना।आज दुनिया भर में 40 करोड़ लोग उच्च रक्त चाप से पीड़ित हो चुके हैं और भारत मे भी आंकड़े कुछ कम चौंकाने वाले नही हैं।हाल के शोध अध्ययन के परिणाम डरवाने है 7 वर्ष से 17 वर्ष के 1,69932 बच्चो में किये गये एक शोध जिसमे 326 स्कूल के बच्चो को शामिल किया गया तो पाया गया कि हर 3 में 1 बच्चा बिगड़ती बॉडी मास इंडेक्स से जूझ रहा है।प्रति 4 में से 1 बच्चा शारीरिक लचीलेपन को खो चुका है और प्रत्येक 5 में से दो बच्चा सामान्य शारिरिक ताकत खो चुका है।क्या आपको नही लगता ये आंकड़े डरावने हैं जब बचपन ही इस प्रकार से रोग ग्रसित हो रहा है तो भविष्य के राष्ट्रनिर्माण करनेवाले कर्णधार कैसे बनेंगे? उम्मीद की जा रही है कि इन आंकड़ों में लगभग 40 प्रतिशत की वृद्धि अब तक हो चुकी है (ये आंकड़े वर्ष 2015 से पहले के हैं) आईसीएमआर की रिपोर्ट के अनुसार 90 % शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रो में रहने वाले लोग किसी भी प्रकार की शारिरिक मनोरंजन जैसी सक्रियता से दूर होते जा रहे हैं जिससे उनमे कोरोनरी आर्टरी डिसीज होने की संभावना 25% तक बढ़ जा रही है,माइक्रोवस्कुलर एंज़ाइना के मामलों में भी 20 से 25 प्रतिशत तक बढ़ोतरी दर्ज की जा चुकी है।मधुमेह पर किये गये एक अध्ययन के अनुसार 392 मिलियन लोग
केवल भारत मे ही निष्क्रियता में नम्बर 1 हैं।एक औसत भारतीय 19 मिनट की शारीरिक सक्रियता को काफी मान लेते हैं जबकि चिकित्सा के दृष्टिकोण से आवश्यक 30 मिनट की सक्रियता की है लोग इसके लिये अपनी व्यस्तता को एक बहाने के रूप में बताते हैं लेकिन यदि आप 30 मिनट की शारीरिक सक्रियता को नियमित दिनचर्या का हिस्सा बनाते हैं तो यह आपको आरोग्य प्रदान करता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत अब एक ऐसे देश के रूप में जाना जानेवाला है जहां जीवनशैली से संबंधित बीमारियां प्रचुर मात्रा में पाई जा रही हैं ।हर चौथा व्यक्ति तनाव से पीड़ित है।जबकि भारत की पुरतान संस्कृति में निष्क्रियता का कोई स्थान नही हैं जहाँ जीवन का विज्ञान आयुर्वेद प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त से ही सक्रिय हो जाने की सलाह देता है।कहा भी गया है
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।। यानि आलस्य से बड़ा दुश्मन कोई नही है और परिश्रम करने से बड़ा मित्र कोई नही है।यानि आलसी रोग रूपी दुख को अपनाता है जबकि परिश्रमी आरोग्य रूपी सुख को अपनाता है तो अब यह आपके हाथ मे है कि आप किसे पसंद करते हैं।अर्थात शारिरिक श्रम ही आरोग्य की मूल कुँजी है।

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