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जानें क्यों कहते हैं इसे पहाड़ का कल्प वृक्ष

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अक्सर हम ऐसे कल्पवृक्ष की कल्पना करते हैं एक ऐसा वृक्ष जो बहु उपयोगी गुणों से युक्त हो,आईये आज आपको हम एक ऐसे ही वृक्ष के बारे में बताते हैं जिसके बहु उपयोग हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एक ही वृक्ष से हमें घी ,शहद ,चारा,गठियावात की दवा और ढेर सारे उपयोग मिलते हैं। निश्चित रूप से ऐसे वृक्ष को कल्प वृक्ष कहना अतिश्योक्ति नही होगी। यह वृक्ष हिमालयी क्षेत्र खासकर नेपाल,भूटान एवं कुमाऊं ,गढ़वाल के गर्म नदी के किनारे वाले इलाकों एवं अंडमान निकोबार द्वीप समूह में बड़े वृक्ष के रूप में पाये जाते हैं। जानकारों की मानें तो यदि इसके गुणों का सही ढंग से उपयोग किया जाय तो यह पर्वतीय इलाकों की आर्थिकी एवं पर्यावरण संरक्षण की जरूरतों को पूरा करने में बेहद मददगार हो सकता है। आइए जानते हैं वृक्ष के बारे में जिसे स्थानीय भाषा में च्यूरा या इंडियन बटर ट्री एवं लेटिन में डिप्लोनेमिया ब्यूटरेसीया के नाम से जाना जाता हैं ।यह वृक्ष वनस्पति घी के प्रचुर स्रोत के रूप में जाना जाता है। च्यूरा के वृक्ष 3000 फीट की ऊंचाई पर पाये जाते हैं ,इसके छायादार वृक्ष अक्टूबर से जनवरी तक फलों से लद जाते हैं ,जुलाई अगस्त में इसके फल पक जाते हैं जो वातावरण में एक विशेष सुगंध उत्पन्न करते हैं। पके हुए फल स्वाद में मीठे एवं पीले रंग के होते हैं। इसके वृक्ष को लगाकर भूस्खलन को भी रोका जा सकता है क्योंकि वृक्ष की जड़ें जमीन में गहराई तक फैल मिट्टी को पकड़ कर रखती है जिससे लेंड स्लाइडिंग का खतरा कम हो जाता है। इस वृक्ष के फूलों से मधुमक्खीयाँ प्रचुर मात्रा में शहद का निर्माण करती है जिस कारण इस वृक्ष के फूल मधुमक्खी पालन के लिये बहुमूल्य माने जाते हैं। इसके फलों में स्थित बीज की गिरी से जमने वाला तेल निकाला जाता है जिसका उपयोग वेदनाशमन सहित सूजनरोधी प्रभाव के कारण गठिया एवं वात के रोगियों में स्थानिक प्रयोग हेतु ऑइंटमेंट के रूप में किया जाता है ।इसके बीज से प्राप्त वसा को सिरदर्द सहित फोड़े फुन्सीयो एवं कील मुहांसों में स्थानीय उपयोग हेतु किया जाता है।सर्दीयों में फटी एड़ियों में क्रीम के रूप में लगाने में भी काम आता है।
नेपाल में इसके वृक्ष से प्राप्त वसा से ‘च्युरी घी’ बनाया जाता है जिसे शुद्ध घी के साथ मिलावट कर भी बेचा जाता है।इस वृक्ष से मच्छर मार अगरबत्ती,धूप,हवन
सामग्री आदि अनेक उत्पाद बनाये जाते हैं।

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