आयुष दर्पण

स्वास्थ्य पत्रिका ayushdarpan.com

Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

पर्वतीय क्षेत्र कहीं का भी हो कमोबेश एक प्रकार के खान-पान रहन सहन और व्यंजनों के लिए ही जाना जाता रहा है।मैंने अपने लेखों में लगातार पर्वतीय क्षेत्र में पायी जानेवाली वनस्पतियों,फूलों,फलों आदि के औषधीय उपयोग की जानकारी लगातार अपने ब्लॉग्स में दी हैं।अभी हाल ही में मैंने एक श्रंखला प्रारम्भ की जिसमें पर्वतीय क्षेत्र में प्रयुक्त व्यंजनों की उपयोगिता की जानकारी देना प्रारम्भ किया आज इसी श्रंखला में दाल के रूप में बड़े चाव से खाई जानेवाली गहत की दाल यानि कुलत्थ की दाल की विशेषता की जानकारी देने जा रहा हूँ।लेटिन मे डोलीचस बाइफ्लोरस के नाम से पहचान रखनेवाली यह दाल हार्स ग्राम के नाम से भी जानी जाती है।शायद ही कोई पहाड़ से तालुक रखने वाला व्यक्ति हो जिसने इस दाल को नहीं चखा हो।भारत,नेपाल सहित अधिकाँश एशियाई देशों में सदियों से इसकी दाल का प्रयोग पथरी(किडनी स्टोन) में किया जाता रहा है।उष्ण प्रवृति का होने के कारण जाड़ों में अक्सर पहाड़ के लोग इसकी दाल का सूप पीते हैं।यह Iron का एक अच्छा स्रोत है तथा किडनी सहित उदर रोगों में भी काफी फायदेमंद होता है।
गहत की दाल को बनाने की विधि:
1 प्याज
6 लहशुन की कलियां
1 छोटा टुकड़ा अदरक
1 चुटकी हींग
1/2 चम्मच हल्दी पाउडर
1 चम्मच धनिया पाउडर
1/2चम्मच मिर्च पाउडर (आवश्यकतानुसार)
नमक (आवश्यकतानुसार)
1चम्मच गरम मसाला
सबसे पहले थोड़ी मात्रा में तेल को गर्म करें इसम पानी में भिंगोई गहत की दाल को हल्की आंच में पकाएं इसके बाद इसमें उपरोक्त मात्रा में हींग ,प्याज ,अदरक,लहशुन आदि डालें,तत्पश्चात 1 मिनट के बाद सारे मसाले नमक और मिर्च उपयुक्त मात्रा में मिलाएं और 1 मिनट तक भूनें इसके बाद इस 10 मिनट तक प्रेसर कुक करें,प्रेसर खुद रिलीज होने दें अब इसके ऊपर धनिये के पत्ते की बारीक कटे टुकड़ों को छिड़क लें और इसे भी मिला लें।पारंपरिक पहाड़ी गहत दाल तैयार हो गयी।इसे अन्य तरीकों से भी बनाया जा सकता है।वैज्ञानिक इसे एन्टीहायपरग्लायसेमिक गुणों से युक्त मानते हैं साथ ही इसे Insulin के resistance को कम करनेवाला भी मानते हैं।इसके बीज के छिलकों में antioxidant गुण भी पाये जाते हैं Indian Journal of Medical Research में प्रकाशित शोध के अनुसार यह किडनी स्टोन को डिजोल्व करने के गुणों से युक्त एक दाल है।आयुर्वेदिक चिकित्सक भी इसकी दाल का प्रयोग अश्मरी,मूत्रल एवं Amenorrhea में करते हैं।NCBI में प्रकाशित एक शोध के अनुसार यह वजन को नियंत्रित करने के गुणों से युक्त प्रभाव भी रखती है।सिद्ध चिकित्सा पद्धति में भी इसकी दाल का प्रयोग कोळू नाम से किया जाता है।कुलत्थ की पत्तियों का प्रयोग जलन वाले स्थान पर लगाने में भी किया जाता है।
पथरी (किडनी स्टोन ) के लिए मेरा स्वयं का एक अनुभूत प्रयोग काफी उपयोगी है आप प्रयोग कराएं निश्चित लाभ मिलेगा
इसे आप क ख ग से याद कर सकते हैं
क-कुलत्थ के बीज/ककड़ी बीज
ख-खीरा बीज
ग-गोक्षुर बीज
इन सभी को सममात्रा में यवकूट कर चूर्ण बना लें और पथरी(किडनी स्टोन) के रोगी में 5 ग्राम प्रातः सायं की मात्रा में 1 महीने तक दें ।इस अवधि में रोगी को प्रचुर मात्रा में पानी लेने को कहें ताकि फोर्स्ड डाई यूरेसिस होता रहे ।
मेरे निजी अनुभव के अनुसार कुलत्थ की दाल का प्रयोग खूनी बबासीर के रोगियों,फिसर के रोगियों में नही कराना चाहिए।शिलाजीत के साथ इसकी विपरीत प्रकृति होने के कारण इसे शिलाजीत सेवन काल में नही देना चाहिए।

Facebooktwitterrssyoutube
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright © 2019 AyushDarpan.Com | All rights reserved.