विलुप्ति की कगार पर पहुँचती वनौषधि ‘चोरा’
1 min readहिमालयी क्षेत्रों में बढ़ते पारिस्थितिजन्य दवाब के कारण एवं संरक्षण के अभाव में दुर्लभ वनस्पतियाँ अब विलुप्त होने के कगार पर है।उच्च हिमालयी क्षेत्र में पायी जानेवली विभिन्न व्याधियों की चिकित्सा में उपयोगी औषधीय पादप ‘चोर’ अब आपको यदा कदा ही दिख पाते हैं।2700 से 3500 मीटर की ऊंचाई पर मिलनेवाला यह औषधीय पादप छायादार ढलानों में पाया जाता है।कुमाऊं में अक्सर शिलाजीत लेकर घूमने वाल नेपाल के डोटी जिले के घुमंतू व्यापारियों के झोले में यह गंदरायन के नाम से आपको देखने को मिल जाएगा।गढ़वाल में केदारनाथ,फूलों की घाटी एवम् बद्रीनाथ जैसे उच्च हिमालयी क्षेत्रों में तथा कुमाऊं के मुन्सियारी के आसपास के बुग्यालों में यह वनस्पति वास्तविक रूप से देखी जा सकती है।बहुवर्षीय एवं 3 से 8 फ़ीट ऊंची यह एक सगंध पादप कुल की वनस्पति है जिसे लेटिन में एन्जेलिका ग्लूका के नाम से भी जाना जाता है।इसकी दो अन्य प्रजातियां क्रमशः आरचेंजीलिका एवम् नुबिजीना भी पायी जाती है।लेकिन ग्लूका को सबसे अधिक उपयोगी माना गया है।स्थानीय बाजार में इसकी सुखी जड़ों की कीमत 200 रुपये किलो से भी अधिक है।इसके बीजों का संग्रहण,जड़ों का अत्यधिक दोहन एवं संरक्षण तथा कृषिकरण का अभाव इसके अस्तित्व पर आ रहे खतरे का नया कारण है।पर्वतीय क्षेत्रो में इसका मसाले के रूप में भी प्रयोग होता है।
इसकी जड़ों का प्रयोग अग्निमांद, कब्ज के साथ साथ उदर शूल में भी किया जाता है।जड़ को पीसकर पानी में मिलाकर छोटे बच्चों में भी पेट से सम्बंधित तकलीफों को दूर करने में दिया जाता है।इसकी पत्तियां उदीपक् एवं उदर विकारों में उपयोगी होती है।इसकी जड़ों में उड़नशील तेल वेलेरिक अम्ल एवं एंजीलीसिन नामक रसायन पाया जाता है।गढ़वाल विश्विद्यालय में वैज्ञानिकों ने इसके कृषिकरण ट्रायल एवं पौध को तैयार करने की दिशा में कार्य किया है।बस आवश्यकता इसके उत्पादन को बढ़ाने एवं लोगों में इसके महत्व को उजागर करने की है।