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जखिया हिमालयी क्षेत्र की बेहतरीन औषधीय वनस्पति

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हिमालयी क्षेत्र ईश्वर प्रदत्त अनेक औषधीय वनस्पतियों का खजाना है यहां मिलने वाली विशिष्ट वनस्पतियों का उपयोग लोग सदियों से पारंपरिक व्यंजनों में करते आ रहे हैं।इनमे से अधिकांश वनस्पतियां खाली बेकार पड़े क्षेत्रों में तथा जंगलों में जानकारी के अभाव में खर पतवार के रूप में मानी जाती रही है।पर्वतीय क्षेत्र के पारंपरिक चिकित्सक वैद्य इन वनस्पतियों का रोगों के उपचार हेतु प्रयोग कराते आ रहे हैं।एक अध्ययन के अनुसार ऐसी लगभग 124 प्रकार की वनस्पतियां है जिनका प्रयोग पर्वतीय क्षेत्र वैद्य पारंपरिक चिकित्सा में करते हैं।(सन्दर्भ:एकेडेमिक जर्नल)
ऐसी ही एक वनस्पति जिसके बीजों का प्रयोग गढ़वाल एवं कुमाऊं में किया जाता है ‘जखिया’ के नाम से प्रचलित है।लेटिन में क्लियोम विस्कोसा के नाम से लोकप्रचलित इस वनस्पति को 500 से 1500 मीटर की ऊंचाई पर खाली बेकार पड़े पर्वतीय क्षेत्रों में आप देख सकते हैं।इसके बीजों को जीरे के विकल्प के तौर पर भी प्रयोग में लाया जाता है।इसके बीजों का प्रयोग गढ़वाल एवं कुमाऊं क्षेत्र में हरप्रकार की कढ़ी में स्वाद उत्पन्न करने के लिए डाला जाता है।इसे डॉग मस्टर्ड भी कहते हैं।केदारघाटी के इलाकों में लोग जखिया के बीजों की खुशबू से निर्मित हरा साग बड़े चाव से खाते हैं।इसे :गढ़वाली जीरा ‘के नाम से जाना जाता है।लोग इसकी खुशबू एवं स्वाद के कारण जीरा या सरसों से अधिक पसंद करते हैं।ये तो रही इसके स्वाद एवं पारंपरिक उपयोग की बात अब जानते हैं इसके औषधीय प्रयोग के बारे में :-1991 में सीएसआईआर में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार इस वनस्पति का प्रयोग सूजन कम करने,लीवर संबंधी समस्याओं को दूर करने में,ब्रोंकाइटिस एवं डायरिया जैसी स्थितियों से निबटने में भी उपयोगी पाया गया है ।जखिया के बीजों से प्राप्त तेल भी औषधीय गुणों से युक्त होता है।इसे इंफेन्टाइल कंवलजन एवं मानसिक विकारों की चिकित्सा में काफी उपयोगी माना गया है ।कई शोध अध्ययनों से यह बात सामने आयी है कि जखिया की पत्तियों में व्रण रोधी (wound healing effect} पाये जाते हैं।1990 में जर्नल इकोनोमिक बोटनी में प्रकाशित शोध के अनुसार जखिया एग्रो-ईकोलॉजिकल महत्व की वनस्पति है क्योंकि इसे पर्वतीय क्षेत्र के लोग इसके बीजों कोस्वयं ही एक दूसरे को अपने यहां लगाने के लिए उपहार स्वरुप आदान प्रदान करते हैं।इसके सुखाये हुए बीज 250 रुपये प्रति किलो की दर से बेचे जाते हैं।इण्टरनेशनल जर्नल आफ रिसर्च इन फार्मेसी एंड केमेस्ट्री में प्रकाशित शोध के अनुसार इसमें मौजूद उच्च एमिनो एसिड एवं मिनरल इसे हाई इकोनोमिक महत्व की वनस्पति का दर्जा देते हैं।एक अन्य अध्ययन के अनुसार इसके बीजों से प्राप्त तेल जेट्रोफा की तरह ही बायोडीजल का भी एक स्रोत है। इससे बनायी गयी एक पहाड़ी रेसीपी को आप भी बना सकते हैं।बस थोड़े आलू (लगभग 1/2,किलो) उबाल लें और इसे काट लें ।अब थोड़ी मात्रा में तेल (1चम्मच) को गर्म करें इसमें जखिया(3 चम्मच) एवम हींग (1चम्मच)डाल दें जब थोडा भुन जाय तो उबले कटे आलू ,हल्दी का पाउडर (1/2 चम्मच),1,/2 चम्मच या आवश्यकतानुसार लाल मिर्च एवं आवश्यकतानुसार नमक मिलाकर 5 से 10 मिनट पकाएं ।अब इसमें ऊपर से ताजी कटी धनिया के पत्ते डाल दें बस हो गया तैयार पहाड़ी जखिया के सुगंध से युक्त रेसीपी तैयार।
आप इसका प्रयोग कर देखें निश्चित् रूप से आप इस पहाड़ी जीरे के मुरीद हुए बिना नही रह सकेंगे।

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