आयुष दर्पण

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इस संसार मे यदि आपको साक्षात ईश्वर के दर्शन करने हों तो आप सूर्य के दर्शन करें,ये मेरा मानना है कि इस चराचर जगत की आत्मा सूर्य हैं।यदि आप वैदिक वांग्मय के संदर्भों को देखें तो आर्य भी समस्त जगत का कर्ता सूर्य को ही मानते थे। प्रश्नोपनिषद प्रथम प्रश्न की 7 वीं श्रुति में उद्धृत है
‘स एव वैश्वानरो विश्वरूप: प्राणोग्निरूदयते।तदेतृचाभ्युक्तम’ 1/7

सूर्य को सर्वप्रेरक,सर्वप्रकाशक एवं सर्वकल्याणकारी माना गया है।

ऋग्वेद ने देवताओं में सूर्य को महत्वपूर्ण स्थान दिया है।
यजुर्वेद में सूर्य को ईश्वर का नेत्र माना गया है।
छांदयोग्यपनिषद में सूर्य की साधना से अच्छी संतति प्राप्ति का उल्लेख है ,ब्रह्मवैवर्त पुराण में सूर्य को परमात्मा का स्वरूप माना गया है।गायत्री मंत्र भी सूर्य से संबधित है जबकि सूर्योपनिषद में सूर्य को सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति का कारण माना गया है।
ये तो रही शास्त्रो की बात अब आइये हम करते हैं विज्ञान की बात
सूर्य की किरणों से हमारे शरीर मे सेरेटोनिन का स्तर बढ़ जाता है जिससे हम स्वयं को तरोताजा और अधिक ऊर्जावान महसूस करते हैं।
कई लोगो मे जो सूर्य के रोशनी से वंचित रहते है या अक्सर अंधेरे में रहते हैं उनमें प्रायः अवसाद देखा जाता है।
सूर्य की रोशनी से मस्तिष्क में स्रवित होने वाली मेलाटोनिन की मात्रा भी तय होती है इसी मेलाटोनिन से मस्तिष्क को नींद आने के संकेत मिलते हैं।
सृस्टि के प्रारंभ से लेकर अब तक बहुत सारे बदलाव हुए है जिसे आधुनिक विज्ञान की भाषा मे एवाल्यूशन कहते हैं लेकिन एक चीज जो आजतक नही बदली है वह है सूर्य की रोशनी।चूंकि जीवन के किसी भी रुप में पुष्पित और पल्लवित होने के पीछे सूर्य की किरणों का अत्यंत महत्व है ।यह सूर्य की किरणें सबसे पहले हमारे आंखों में स्थित फोटोरिसेप्टर द्वारा ग्रहण की जाती है जो मस्तिष्क में एक सूचना के रूप में पहुंचती और यही सूचना व्यक्ति और उसके आसपास की एक इमेज बनाती है।सूर्य का प्रकाश ही है जो हमारे शरीर के सोने और जगने के चक्र ‘सरकेडीयन रीदम’ को तय करती है हाल ही में सेल नामक विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित एक शोध ने एक नए आयाम को उजागर किया है जिसमे सूर्य के प्रकाश से स्तनधारियों के जीवन मे आनेवाला नया प्रभाव सामने आया है।
सभी जीवधारी सूर्य के प्रकाश को आप्सिन नामक प्रोटीन की मदद से ग्रहण करते हैं जिनमे दो मेलोनोप्सिन एवं न्यूरोपसिन होते है जिन्हें रेटिनल कोशिकाओं में पाया जाता है,इसी प्रकार नेत्रो के बाहर शरीर मे मिलने वाले क्रोमेटोफोर त्वचा में स्थित होते हैं ।अभी तक वैज्ञानिकों का यही मानना था कि नेत्रों में स्थित पिगमेंट्स की मदद से ही जीवधारी सूर्य प्रकाश को ग्रहण करते हैं ।
वैज्ञानिकों के अनुसार मस्तिष्क, लीवर और किडनी में मौजूद प्रोटीन आप्सिन 3 प्रकाश के प्रति संवेदनशील होते हैं ।वैज्ञानिकों ने जेनेटिकली मोडिफाइड चूहों की प्रजाति जिनमे आप्सिन 3 प्रोटीन नही पाया जाता उनके अंदर सूर्य के प्रकाश की अलग अलग स्थितियों में एक्पोजर देकर शारीरिक प्रभाव देखे गए तो उनमें मेटाबोलिक सिंड्रोम की स्थिति की संभावना अधिक पाई गई।मेटाबोलिक सिंड्रोम जिसमे उच्च रक्तचाप,रक्तगत शर्करा की वृद्धि तथा रक्त में लिपिड की मात्रा में परिवर्तन सामान्य तौर पर देखा जाता है ।यानी यह इस शोध से यह सिद्ध हुआ है कि सूर्य के प्रकाश का शरीर को नियंत्रित मात्रा में एक्सपोजर शरीर को उच्च रक्तचाप,डायबटीज एवं रक्त में लिपिड्स के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद करता है।उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्विद्यालय के शिक्षक डॉ प्रियरंजन तिवारी का कहना है कि पृथ्वी सूर्य का हिस्सा है इस प्रकार पृथ्वी पर स्थित सारी रचनायें कहीं न कहीं सूर्य का अंश ही हुई,इस प्रकार हम सभी सूर्य पुत्र हुए,यही सूर्य कफ दोष का अवशोषण करता है जो रक्तगत शर्करा के बढ़ने को रोकता है साथ ही खून को पतला कर रक्त नलिकाओं को और अधिक लचीला बना देता है ,है न वही बात जिस बात को वेदों और उपनिषदों ने सदियो पूर्व ऋचाओ के माध्यम से व्यक्त किया आजका आधुनिक विज्ञान भी उसी तथ्य को पुष्ट कर रहा है।

(उपरोक्त लेख आयुष दर्पण के लिये डॉ नवीन जोशी एमडी आयुर्वेद द्वारा लिखा गया है)

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