शहरी की अपेक्षा मानसिक रूप से मजबूत होते हैं ग्रामीण

मानसिक रूप से रहना है स्वस्थ तो शहरों नही जंगलों के समीप प्राकृतिक वातवरण में रहना शुरू कीजिये! शहरीकरण की अंधी दौड़ में जहां लोग ग्रामीण परिवेश और प्राकृतिक वातावरण छोड़ शहरों में बसना पसंद कर रहे हैं वहीं आधुनिक शोध ये सिद्ध कर रहे हैं कि शहरों में रहनेवालों से अधिक ग्रामीण परिवेश में प्राकृतिक रूप से जंगलों के समीप रहनेवाले लोग मानसिक रूप से अधिक स्वस्थ होते हैं ।जर्मनी के मैक्स प्लेनक इंस्टीट्यूट फार ह्यूमन डेवलपमेंट की एक शोध के अनुसार ग्रामीण परिवेश में प्रकृति के समीप रहनेवाले लोग शहरों में रहनेवालों की अपेक्षा अधिक मेंटली फिट होते हैं।ग्रामीण परिवेश में प्रकृति के समीप रहनेवाले लोगो के “एमयगड़ेला” नामक हिस्से में अधिक सकारात्मक प्रभाव देखा जाता है।”एमयगड़ेला” मस्तिष्क का वो हिस्सा है जो भावना,व्यवहार और इमोशंस एवं मोटिवेशन को नियंत्रित करता है।जब भी हम डर या किसी तनाव से दो चार होते हैं तो मस्तिष्क कायह “एमयगड़ेला” नामक हिस्सा सक्रिय होता है।हालांकि प्रकृति के मस्तिष्क पर फीजियोलॉजी कल एवं साइकोलॉजिकल सकारात्मक प्रभाव पहले भी कई शोध पत्रों में डाक्यूमेंटेड हुए हैं।जॉर्जी ब्रेटमेन के एक लेख “हाउ वाकिंग इन नेचर चेंजेज द ब्रेन” के अनुसार प्रकृति के साथ समय बिताना मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।शहरों में रहनेवाले लोग अधिक मानसिक रोग जैसे सीजोफ्रेनिया, एंजाइटी डिसऑर्डर,अवसाद आदि से पीड़ित होते रहे हैं।ग्रामीण क्षेत्रो में प्रकृति के समीप रहनेवाले लोगों के मष्तिष्क का “एमयगड़ेला” अधिक सक्रिय होता है।इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता ‘कुह्न’के अनुसार प्रकृति ही मनुष्य के मस्तिष्क की क्षमताओं का निर्धारण करती है।