कोलकाता में ARSP की आयुर्वेद पर अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद- पश्चिम बंगाल , ARSP, आयुष दर्पण फाउंडेशन-भारत, ADF के सहयोग से आयुर्वेद को समकालीन स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए तथा सरकार द्वारा एक प्रभावी, कुशल, सस्ती और समग्र स्वास्थ्य विधि बनाने हेतु कोलकाता, पश्चिम बंगाल में दो दिवसीय गोष्ठी का आयोजन करेगा। इस कार्यकम में कांफ्रेंस का शीर्षक – “Ayurveda as a medicine system to address contemporary health challenges in an effective, efficient, affordable and holistic way- Perspectives on Policy and Practice” – रखा गया है।ARSP का पश्चिम बंगाल प्रकोष्ठ सन 1980 में संस्था के तत्कालीन महासचिव स्वर्गीय श्री बालेश्वर अग्रवाल के नेतृत्व में स्थापित हुआ जो कि एक गैर-लाभकारी, गैर-सरकारी और गैर-राजनीतिक संगठन है। यह संस्थान पूरे विश्व में भारतीय मूल के लोगों के साथ निकट संबंध रखने तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने के लिए ‘वसुधैव कुटुंबकम ‘की भावना के साथ काम करता है।वहीं आयुष दर्पण फाउंडेशन, ADF, आयुर्वेद के सिद्धांतो तथा विधाओं के प्रचार एवं प्रसार के कार्य में संलिप्त है। ज्ञात हो सन 2016 में ADF ने विश्व की पहली सर्जरी जो कि बिना एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल से की गयी, में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । यह “दुनिया में अपनी तरह का पहला” अनूठा और अभूतपूर्व प्रयोग था जिसमें मेरठ में , डॉक्टरों और चिकित्सकों के एक समूह ने केवल आयुर्वेद के सिद्धांतों एक 83 वर्षीय व्यक्ति का 240 ग्राम प्रोस्टेट सफलतापूर्वक हटाया।
भारत की स्वदेशी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद अन्य चिकित्सा पद्धतियों जैसे चीनी, ग्रीक, तिब्बती आदि का आधार है , औरसमकालीन स्वास्थ्य चुनौतियों के समाधान में इसका प्रयोग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है
जहाँ चीन जैसे देश अपनी परंपरागत चिकित्सा प्रणाली का उपयोग लोगों को स्वस्थ्य लाभ देने के लिए प्रभावी रूप से करते हैं वहीँ भारत में इसका नितांत आभाव है। चीन की तू यूयु को पारंपरिक चीनी चिकित्सा (TCM) में प्रयुक्त जड़ी-बूटियों से मलेरिया विरोधी दवा आर्टीमिसिनिन के निष्कर्षण के लिए 2011 के लास्कर पुरस्कार और 2015 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया ईसंयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व स्वास्थ्य संगठन (UN WHO) की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2001 में चीन में दवाइयों की कुल खपत का 30% से 50% हिस्सा पारंपरिक चीनी दवाओं का था। चीन के 95% सामान्य अस्पतालों में पारंपरिक चीनी दवाओं के लिए इकाइयां थीं। देश भर में स्थित 170 शीर्ष अनुसंधान संस्थान और 600 से अधिक विनिर्माण संस्थान पारंपरिक चीनी दवाओं के निर्माण के लिए संलग्न थे। इसके अलावा पारंपरिक दवाइयों के लिए प्रयुक्त औषधीय जड़ी बूटियों के उत्पादन और औषधीय पौधों की खेती में 13,000 केंद्रीय खेतों में जिसका कुल रोपण क्षेत्र 348,000 एकड़ था में 340,000 चीनी किसान कार्यरत थे।वहीँ भारत का स्वास्थ्य सेवा बाजार जो कि 2015 से 23% की समग्र वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ता हुआ 2020 में 280 अरब डॉलर का हो जायेगा उसमे मात्र 2.8% हिस्सा आयुर्वेदिक उत्पादों का होगा जो की केवल 8 अरब डॉलर है। भारतीय स्वास्थ्य सेवा बाजार में आयुर्वेद जैसी पारम्परिक स्वास्थ्य विधाओं का नगण्य हिस्सा राष्ट्र के लिए अत्यंत चिंता का विषय है।
कोलकाता में आयुर्वेद पर होने वाली यह अंतर्राष्टीय गोष्ठी चिकित्सकों और देश के नीति निर्माताओं को जन मानस के साथ संवाद का अवसर देगी। इसमें भारत और विदेश से आयुर्वेद के नामी विशेषज्ञ भी शामिल होंगे जिनमे पद्मश्री वैद्य बालेंदु प्रकाश, ऋषिकुल हरिद्वार के प्रख्यात मर्म विशेषज्ञ प्रो सुनील जोशी , आयुष दर्पण फॉउण्डेशन के डॉ नवीन जोशी MD, तिब्बती चिकित्सा प्रणाली की विशेषज्ञ डॉ जामियांग डोल्मा, मॉरिशस के महात्मा गांधी आयुर्वेद अस्पताल के डॉ
प्रेमचंद बुझावन, NBRI-CSIR के डॉ ए के एस रावत जिन्होंने डायबिटीज के लिए AIMIL द्वारा निर्मित BGR 34 का फार्मूलेशन किया, तथा नेपाल और भूटान के विशेषज्ञों से संवाद का अवसर भी प्राप्त होगा।
कोलकाता चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स द्वारा प्रायोजित और अंतर्राष्ट्रीयसहयोग परिषद- पश्चिम बंगाल द्वारा आयोजित इस दो दिवसीय आयुर्वेद गोष्टी को केंद्रीय आयुष मंत्री श्री श्रीपद नाइक और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री अश्विनी चौबे भी संबोधित करेंगे। स्वदेशी स्वास्थ्य प्रणाली आयुर्वेद के भारत में प्रचार एवं प्रसार के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय राजनयिकों की भी महत्वपूर्ण उपस्थिति होगी।