आयुर्वेद के शल्य चिकित्सकों को मिला शल्य चिकित्सा का वैधानिक अधिकार

भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद द्वारा जारी अधिसूचना 19 नवंबर 2020 के अनुसार आयुर्वेद में एमएस शल्य तंत्र उपाधि धारकों को 30 विभिन्न शल्य तकनीकों का रोगियों पर अभ्यास को वैधानिकता मिल गई है। ये 30 शल्य तंत्र की विधियों की टर्मिनोलॉजी आयुर्वेद के ग्रंथों में बताई गई है और आयुर्वेद के शल्य तंत्र के परास्नातक इन तकनीकों का प्रयोग भी करते आ रहे थे,अब इस अधिसूचना से उन्हें इन शस्त्र कर्मों को करने का वैधानिक अधिकार प्राप्त हो गया है।आयुर्वेद दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति के रूप में जानी जाती है और महर्षि सुश्रुत को शल्य तंत्र के पितामह के रूप में जाना जाता है।भारत के शल्य तंत्र से ही प्लास्टिक सर्जरी जैसी आधुनिक शल्य चिकित्सा की शाखाएं उत्पन्न हुई और आज भी शल्य तंत्र की तकनीक छेदन,भेदन,एषण, आहरण ,विस्रावण और सीवन पर आधारित रही है।भारत पर विभिन्न आक्रांताओं और बदलती धार्मिक परिस्थितियों ने भारत की चिकित्सा पद्धतियों के वैभव को नुकसान पहुंचाया और अंग्रेजो ने भी आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति को गर्त में पहुंचाने में कोई कसर नही छोड़ी।अब एक बार भारत सरकार के आयुष के प्रति सकारात्मक रुख के कारण देश की अपनी चिकित्सा पद्धति पुनः अपना खोया वैभव प्राप्त कर सकेगी।