आइये जानते हैं क्यों कहते हैं इसे पहाड़ का अमृत
1 min readमहर्षि चरक ने कहा है कि इस जगत में मौजूद सारे द्रव्य औषधि हैं बशर्ते की उनके उपयोग हमे पता हों।जितनी भी प्राकृतिक वनस्पतियां हो जिन्हें हम बेकार समझते है उन सभी में अद्भुत औषधीय गुण होते है।आइये जानते हैं ऐसी ही प्राकृतिक वनस्पति जिसकी मार बचपन में सभी ने खाई होगी, नई हां कंडाली।आस्चर्य की बात देखिये इसको शरीर मे छू भर देने से इर्रिटेशन होता है।आज यही कंडाली अपने ओषधीय गुणों के कारण लोगों के ध्यान आकर्षित कर रही है।कंडाली का लेटिन नाम आर्टीकेया देओका है।हालांकि उत्तराखंड इस वनस्पति की खेती नही की जाती ,यह स्वाभाविक रूप से ही खेतो के दोनों और उगी हुई मिल जाती है।जबकि दुनिया के अन्य देशों में इसे आद्योगिक लाभ के लिये उगाया जाता रहा है।इसमें उपस्थित विटामिन सी ,पोटेशियम ,मेगनीसियमत था केल्शियम इसे मल्टीविटामिन श्रेणी में ला खड़ा करता है।एमिनो एसिड एवंएक प्रमुख रसायन बीटा केरोटीन का भी प्रमुख स्रोत कंडाली है
इसे पहाड़ का अमृत कहना इसके गुणों पर फिट बैठता है।एक्सपर्ट्स की मानें तो इसके इन्ही गुणों के कारण इस मलेरिया जैसे बुखार में एक बेहतरीन प्राकृतिक एंटीआक्सीडेंट आयुर्वेदिक औषधि के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
इसका उपयोग चिकित्सक कब्ज की शिकायत को दूर करने में भी करते हैं।
वैसे इस वनस्पति का आद्योगिक प्रयोग काफी समय से होता आ रहा है जिनमे इसके रेशों से जैकेट,शाल ,स्कार्फ आदि तैयार किये जाते हैं।
इस वनस्पति से निकाले गए एक्सट्रेक्ट पर हुए शोध यह बताते हैं कि इसके अंदर मौजूद फेनोलिक कंपाउंड एवं फ्लेवनॉयड सूजन रोधी प्रभाव भी दर्शाते हैं।
आयरन के प्रचुर मात्रा में होने के कारण इससे बनाया जानेवाला साग मलेरिया जैसी अन्य अवाथाओ में रक्ताल्पता को दूर करने मे कारगर होता है।
आपके शरीर के किसी भी हिस्से में आई मोच में या शरीर मे आई जकड़न में इसकी पत्तियों के अर्क को प्रभावित हिस्से में लगाने से काफी लाभ मिलता है।
अगर आयुर्वेद की दृष्टि से देखे तो इस वनस्पति में मौजूद तिक्त और कषाय रस के कारण यह ज्वर एवं सूजन रोधी प्रभाव दर्शाता है जिस कारण इसका प्रयोग विषम ज्वर यानि मलेरिया जैसे पैटर्न के ज्वरो में परजीवी की संख्या को कम कर बुखार जैसे लक्षणों को ठीक करने में उपयोगी है इस पर विस्तृत शोध किये जाने की आवश्यकता है।