आयुष दर्पण

स्वास्थ्य पत्रिका ayushdarpan.com

जानें क्यूँ मनाते हैं हम धनतेरस !

1 min read
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail
                                                                                           ॥ॐ धन्वन्तरये नम:!!

हम भारतीय अपने तीज त्योहारों से खुद को ही नहीं अपितु दुनिया सहित आने वाली पीढिय़ों का मार्गदर्शन करते हैं , ऐसी ही एक कहानी हम आपको सुनाते हैं। दीपावली से ठीक पहले हम धनतेरस मनाते हैं और खरीदारी करते हैं ,पर चिकित्सकों के लिए इस दिन का महत्व कुछ और ही होता हैं। हिन्दू संस्images.jpgकृति में भगवान् विष्णु के अवतार भगवान् धन्वन्तरी माने गए हैं ,वेदों और पुराणों में इन्हें देवताओं का चिकित्सक कहा गया है और आयुर्वेदिक चिकित्सक इन्हें अपना आराध्य मानते हैं। वैसे भी हिन्दू धर्मावलम्बी अपने स्वास्थ्य की रक्षा क़ी कामना हेतु भगवान् धन्वन्तरी क़ी आराधना करते रहे हैं। भगवान् धन्वन्तरी के बारे में कई कहानियां हैं, कहा जाता है, कि देवासुर संग्राम के दौरान जब महासमुद्र का मंथन हुआ था ,तब विष्णु के अवतार धन्वन्तरी अपनी चार भुजाओं में क्रमश: अमृत ,शंख ,चक्र एवं जलौका के साथ प्रकट हुए थे। वैसे धन्वन्तरी शब्द सबसे पहले चिकित्सक लिए भी प्रयुक्त हुआ है तथा ऐसा माना जाता है, कि दुनिया के पहले सर्जन धन्वन्तरी ही थे। वैदिक परम्परा के अनुसार धन्वन्तरी को आयुर्वेद के जनक के रूप में माना जाता है ,उन्हें अपने समय में प्रख्यात शल्य चिकित्सक के रूप में जाना जाता था। उन्हें आज क़ी आधुनिक प्लास्टिक सर्जरी का भी जनक माना जाता है ,क्योंकि उन्हें बगैर संज्ञाहरण द्रव्यों के सर्जरी करने में महारत हासिल की थी। अपने इन्ही गुणों के कारण राजा विक्रमादित्य के नौ रत्नों में वे एक थे। गरुड़ पुराण के अनुसार उन्होंने ही अष्टांग आयुर्वेद एवं शल्य चिकित्सा का पारंपरिक ज्ञान, महान महर्षि सुश्रुत को दिया,जिनके द्वारा रचित सुश्रुत संहिता आज पूरी दुनिया के सर्जनों के लिए आधार बना है। ऐसा भी माना जाता है, कि़ धन्वन्तरी काशी के राजा दिवोदास के नाम से उत्पन्न हुए और वे पहले देवता थे, जिन्होंने अन्य देवताओं को रोग, जरा (बुढापे ) एवं मृत्यु के भय से मुक्त किया और उन्होंने ही हिमालय क्षेत्र में सुश्रुत एवं अन्य महर्षियों को शल्य चिकित्सा का ज्ञान दिया। वैसे धन्वन्तरी नाम का प्रयोग पुराणों में कई बार हुआ जिससे एक से अधिक धन्वन्तरी के होने का भान होता है। ऋग्वेद में धन्वन्तरी शब्द नहीं आया है लेकिन दिवोदास को महर्षि भारद्वाज से जोड़ा गया है जिन्होंने आयुर्वेद का ज्ञान क्रमश: ब्रह्मा,दक्षप्रजापति,अश्विनी कुमारों (देवताओं के चिकित्सक ) एवं इन्द्र क़ी परम्परा से प्राप्त किया। विष्णु पुराण के अनुसार धवन्तरी ने ही आयुर्वेद को आठ भागों में वर्गीकृत किया परन्तु उनका विशेष योगदान शल्य -चिकित्सा के लिए जाना जाता है , उनके शिष्यों के सम्प्रदाय के चिकित्सकों को धन्वन्तरी सम्प्रदाय के चिकित्सक के रूप में जाना जाने लगा ,इसका प्रमाण चरक संहिता में आयुर्वेदिक काय- चिकित्सा के जनक महर्षि चरक द्वारा शल्य चिकित्सा के लिए रोगीयों को धनवंतरी सम्प्रदाय के चिकित्सकों के पास रेफर करने का उद्धरण है। आज भी भगवान् धन्वन्तरी की पूजा भारत के कई हिस्सों में की जाती है, तमिलनाडु के श्रीरंगम में स्थित रंगास्वामी मंदिर भगवान् धन्वन्तरी का मंदिर है ,जहां उनकी उपासना की जाती है, मंदिर के ठीक सामने 12 वीं शताब्दी का एक पत्थर है, जिसमें महान आयुर्वेदिक चिकित्सक गरुड़वाहन भट्टर की लिखावट है और वहाँ आज भी लोगों को प्रसाद के रूप में जडी बूटियों का पेय दिया जाता है। केरल की अष्टवैद्य परंपरा के चिकित्सक भी सदियों से भगवान् धन्वन्तरी की उपासना करते आये हैं। इन सब कथाओं से एक बात तो स्पष्ट है कि़ हम भारतीय अपने स्वास्थ्य के लिए बहुत पहले से ही सचेत थे और अच्छे स्वास्थ्य के साथ लम्बी रोगरहित सुखायु की कामना से धन्वन्तरी आदि चिकित्सकों को देवताओं का दर्जा देकर उनकी पूजा,अर्चना किया करते थे।धनतेरस के दिन मनाई जानेवाली धन्वन्तरी जयंती भी उसका एक प्रतीक है। 

                                                                                    !!जय धन्वन्तरी !! जय आयुर्वेद !!

आप सभी को पुनः धनवंतरी त्रयोदशी की हार्दिक शुभकामनायें :डॉ.नवीन जोशी एम्.डी.आयुर्वेद ,सम्पादक आयुष दर्पण 

* मित्रों इसे कापी पेस्ट न करें चाहें तो शेयर करें !!

Facebooktwitterrssyoutube
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

1 thought on “जानें क्यूँ मनाते हैं हम धनतेरस !

  1. डॉ,नविन जोशी,dhaniwad ,पत्रिका बहुत उपयोगी है.किसी भी सज्जन को अपनी आयुर्वेदिक फैक्ट्री खोलने हो या पुराने फैक्ट्री को आधुनिक तरह से बनवाना,फॉर्मुलेशन्स,मशीनरी तथा नई प्रोडक्ट डेवलपमेंट कई लिए सम्पर्क करे(jaikrit14@hotmail.com)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright © 2019 AyushDarpan.Com | All rights reserved.