आयुष दर्पण

स्वास्थ्य पत्रिका ayushdarpan.com

पुनर्नवाष्टक क्वाथ: जलोदर, यकृत रोग और सूजन का प्रभावशाली आयुर्वेदिक उपचार

पुनर्नवाष्टक क्वाथ आठ औषधियों से बना आयुर्वेदिक योग है जो यकृत विकार, जलोदर, सूजन और पाचन समस्याओं में अद्भुत लाभ देता है।
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

यकृत, जलोदर एवं पाचन विकारों का समग्र आयुर्वेदिक समाधान

भारतीय आयुर्वेद परंपरा में अनेक औषधीय योग ऐसे हैं जो न केवल रोग को नियंत्रित करते हैं, बल्कि शरीर को उसकी मूल प्राकृतिक स्थिति में पुनः स्थापित करते हैं। ऐसा ही एक उत्कृष्ट योग है — पुनर्नवाष्टक क्वाथ। यह योग विशेष रूप से यकृत विकार (लिवर डिसऑर्डर), जलोदर (Ascites), शरीर में द्रव संचय तथा अमाशय संबंधी दोषों के लिए बनाया गया है।

इस क्वाथ में आठ विशेष औषधियाँ सम्मिलित की जाती हैं, जिनका समन्वय शरीर में दोषों के संतुलन, अग्नि की स्थिरता और शुद्धि के लिए अद्वितीय कार्य करता है।


🌱 घटक द्रव्य एवं उनके कार्य

  1. पुनर्नवा (Boerhavia diffusa):
    प्रमुख मूत्रल औषधि, जो जलोदर व सूजन में लाभकारी है। यह शरीर से अतिरिक्त जल को निकालकर गुर्दों और यकृत का कार्य सहज करती है।

  2. कुटकी (Picrorhiza kurroa):
    सुप्रसिद्ध यकृत रक्षक औषधि। पीलिया, हेपेटाइटिस, व यकृत शोथ में अत्यंत उपयोगी। पाचक अग्नि को जागृत कर आम दोष का नाश करती है।

  3. गुडूची (Tinospora cordifolia):
    रसायन, त्रिदोषनाशक और रोगप्रतिरोधक। यकृत व रक्त शुद्धि में अत्यंत प्रभावशाली।

  4. देवदारु (Cedrus deodara):
    कफशामक एवं पाचक। सूजन, दर्द और आमवात की स्थितियों में गुणकारी।

  5. हरितकी (Terminalia chebula):
    त्रिफला की प्रधान औषधि। दोषहर, पाचन में सुधारक और दीर्घजीवन की दात्री।

  6. नीम (Azadirachta indica):
    कृमिनाशक, रक्तशोधक व शीतल गुणों से युक्त। त्वचा व रक्त से जुड़ी समस्याओं में उपकारी।

  7. सौंठ (Zingiber officinale):
    जठराग्निवर्धक, आम दोष को नष्ट करने वाली। मूत्र व मल विकारों में लाभकारी।

  8. पटोल पत्र (Trichosanthes dioica):
    पित्तनाशक एवं यकृत विकारों में विशेष उपयोगी। पीलिया, उदरशूल एवं त्वचा रोगों में उपादेय।


मुख्य लाभ

  • यकृत की कार्यक्षमता में वृद्धि

  • जलोदर व सूजन की अवस्था में राहत

  • विषहरण एवं रक्तशुद्धि

  • पाचन संस्थान का सशोधन

  • मूत्रल प्रभाव से शरीर का शुद्धिकरण

  • वात, पित्त व कफ का संतुलन


🧪 सेवन विधि:

क्वाथ को सामान्यतः 50–60 मि.ली. मात्रा में, प्रातः व संध्या भोजन से पूर्व गुनगुना करके सेवन किया जाता है।

⚠️ विनम्र निवेदन:
इस योग का सेवन केवल योग्य आयुर्वेदाचार्य के निर्देशानुसार ही करें। यह औषधि विशिष्ट चिकित्सा-प्रेरित योग है, अतः प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति, रोग की स्थिति और दोष संतुलन के अनुसार चिकित्सकीय मार्गदर्शन आवश्यक है।


🔔 निष्कर्ष

पुनर्नवाष्टक क्वाथ आयुर्वेद की परंपरा में एक अत्यंत समन्वित और संतुलित योग है, जो रोग के मूल कारण को लक्ष्य कर उसे नष्ट करता है। इसका सात्त्विक प्रभाव केवल शरीर को नहीं, अपितु मानसिक और ऊर्जात्मक संतुलन को भी पुनः स्थापित करता है।

🌿 प्राकृतिक औषधियों से, शुद्ध शरीर और निर्मल चित्त की ओर एक सुंदर यात्रा।

🪷 आयुष दर्पण – जहाँ आयुर्वेद जीवंत है, वैज्ञानिक भी।


About The Author

Facebooktwitterrssyoutube
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

©2025 AyushDarpan.Com | All Rights Reserved.