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जानें अपने शरीर स्थित पहिये को-पार्ट 1

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चक्र का नाम आते ही हम यह सोचते हैं किसी पहिए की बात हो रही होगी शरीर में ईश्वर ने भी कुछ इसी प्रकार की रचना बनाई है जो चक्र यानी पहिये की भांति घूमती रहती है जिसके अधिक घूमने कम घूमने या ना घूमने से तमाम स्थितियां पैदा होती है आज मैं इस लेख के माध्यम से आपको आपके शरीर में स्थित पहिए जिसे चक्र के नाम से जाना जाता है से रूबरू कराऊंगा ।योग आयुर्वेद एवं बुद्धिज्म में चक्र की परिकल्पना की गई है। इन चक्रों में ऊर्जा के स्रोत प्राण स्थित होते हैं।
शरीर मे आधार (Base) यानि मूल से उच्चतम शिखर (Crown) तक 7 चक्र यानि घूमने वाले पहिये होते हैं।
ये चक्र रूपी पहिये घूमते हुए स्वस्थित प्राण रूपी ऊर्जा को सम्यक रूप से संचारित कर हमें स्वस्थ एवं लंबी आयु प्रदान करते हैं ।सम्यक रूप से घूमते हुए चक्र स्वस्थित ऊर्जा के स्रोत प्राण को मूल से शिखर की ओर संचरित कराते हैं जिसे ‘कुंडलिनी जागरण’ भी कहते हैं । यही घूमते हुए पहिये कभी अधिक घूमने कम घूमने या ना घूमने की स्थिति में विभिन्न मानसिक एवं शारीरिक परेशानियों को उत्पन्न करते हैं।
ये चक्र रूपी पहिये की घूमने की गति (कम/अधिक /न घूमना) शारीरिक स्थितियों पर निर्भर करती है तथा शारिरिक स्थितियां भी इन चक्र रूपी पहियों के घूमने (कम घूमने/अधिक घूमने/ न घूमने ) पर निर्भर करती है,
यानि भौतिक शरीर एवं चक्र रूपी पहिये दोनों एक दूसरे से सामंजस्य बना कर चलते हैं दोनो ही एक दूसरे पर अपना प्रभाव डालते हैं।मान लीजिये कि कोई एक चक्र ने घूमना बन्द कर दिया तो यह चक्र के आसपास के क्षेत्र में रोग की स्थिति जैसे वेदना आदि लक्षणों को उत्पन्न कर देगा।
हमारे शरीर में स्थित पहिए सही प्रकार से घूम रहे होते हैं तो हम स्वास्थ्य की उच्चतम स्थिति में होते हैं
कई लोग चक्रों को इतना अधिक समझते हैं की उन्हें किसी भी प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक परेशानी होने पर यह पता चल जाता है कि उनका कौन सा चक्र प्रभावित हुआ है। योग,प्राणायाम ,ध्यान, साधना,स्वयं को जानना (self realisation) आदि का अभ्यास के साथ साथ आयुर्वेद के सदवृत का पालन,सम्यक आहार -विहार भी हमारे शरीर मे स्थित चक्र रूपी पहियों की गति को सांमान्य बनाये रखने में मददगार होता है
आईये जानें शरीर स्थित 7 चक्रों को-
सबसे पहला चक्र है ‘मूलाधार’जिसे ‘Root Chakra’ भी कहते हैं।यह रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले स्तर यानि आधार पर स्थित होता है।
‘मूलाधार चक्र’ निचली 3 वर्टेबरा (रीढ़ की हड्डी),मूत्र की थैली एवं बड़ी आंत के कोलोन वाले हिस्से में अवस्थित होता है।
‘मूलाधार चक्र’ का शारीरिक एवं मानसिक प्रभाव:- मूलाधार चक्र शरीर मे सुरक्षा और जीवन को बचाये रखने की प्रवृति,मूलभूत आवश्यकताएं ( रोटी,कपड़ा , मकान,अच्छी नींद) आदि से संबंध रखता है।यह स्वयं को जमीन से जुड़े रहने एव संतुलित रहने के लिये प्रवृत्त करता है।
‘मूलाधार चक्र’ में आई गड़बड़ी के लक्षण- यदि व्यक्ति कब्ज,ब्लैडर की समस्या,एड्रीनल ग्रंथि की समस्या, निचले हिस्से में ऐंठन आदि लक्षण मूलाधार चक्र के पहिये की गति में आई गड़बड़ी की ओर इंगित करते हैं।
मूलाधार चक्र के अधिक सक्रिय होने के लक्षण:- मतलब निकालने की प्रवृत्ति,पावर और पूछ की चाहत,दूसरो पर अविश्वास या सताए जाने की भावना,भौतिक संसाधनों की अधिक लालसा आदि लक्षण पैदा होते हैं।ऐसे लक्षणों के दिखने पर आपको स्वयं या रोगी के मूलाधार चक्र के अधिक सक्रिय होने का एहसास होंना चाहिए। मूलाधार चक्र के कम सक्रिय होने के लक्षण- कहते हैं न कि व्यक्ति को अपनी जमीन नही छोड़नी चाहिये यदि व्यक्ति प्रकृति और समाज से कटने लगे तो यह मूलाधार चक्र के कम सक्रिय होने के लक्षण हैं।इसी प्रकार दिन में सपने देखना,डिसऑरीयनटेड रहना, किसी भी कार्य मे मन न लगना,अनिश्चितता के कारण एक डर (anxiety),आर्थिक असुरक्षा की भावना जैसे लक्षण मूलाधार चक्र के अल्प सक्रिय होने पर मिलते हैं।
मूलाधार चक्र की गति को सन्तुलित करने के उपाय-मूलाधार चक्र का स्वाभाविक रंग लाल होता हैअतः ऐसे फल या सब्जियां जिनमे गहरा लाल रंग होता है तथा विशेषकर जमीन के अंदर स्थित इस चक्र की गड़बड़ी को ठीक करने में उपयोगी होते है उदाहरण-गाजर,स्ट्राबेरी,टमाटर, अनानास,लाल सेब आदि।
लं का उच्चारण, ध्यान ,रंगों में विशेषकर लाल रंग का सही चिकित्सकीय प्रयोग,प्रकृति के करीब जाने की प्रवृति आदि मूलाधार चक्र की गति को संतुलित करते हैं।
दूसरा चक्र है *स्वाधिस्ठान चक्र*।यह चक्र मूलाधार के ठीक ऊपर स्थित होता है इसे sacral Chakra भी कहते हैं।
यह नाभि के नींचे,प्यूबिक हड्डी के ऊपर,जनननेंद्रियों के पास स्थित होता है।
स्वाधिस्ठान चक्र का शारिरिक एवं मानसिक प्रभाव:-स्वाधिस्ठान चक्र रचनात्मकता,सेक्सुअलिटी,किसी कार्य को करने के लिये जुनून,प्रस्तुतिकरण,भावनात्मकता एवं सेंसिटिविटी के लिये जिम्मेदार होता है।
‘स्वाधिस्ठान चक्र’ में आई गड़बड़ी के लक्षण-महिलाओं में मासिक धर्म की समस्या,जननेन्द्रियों की गड़बड़ी,कमर और पीठ का दर्द,मूत्रवह संस्थान की गड़बड़ी,इनफर्टिलिटी आदि लक्षण स्वाधिस्ठान चक्र की गड़बड़ी की ओर इंगित करते हैं।
*स्वाधिस्ठान चक्र के अधिक सक्रिय होने के लक्षण*:-अधिक नाटकबाज होना,सेक्सुअल एडिक्ट,दूसरों से लंबा भावनात्मक संबंध बनाने की प्रवृति आदि इस चक्र के अधिक सक्रिय होने की ओर इंगित करते हैं।……क्रमश: डॉ नवीन जोशी

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