आयुष दर्पण

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जानिये अपने शरीर स्थित चक्रों को पार्ट 3

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(गतांक से आगे )…..शरीर मे स्थित पांचवा चक्र विशुद्धि चक्र है जिसे Throat Chakra भी कहा जाता है।यह गले के मध्य में स्थित होता है।प्रायः थायराइड ग्रंथि,गला,बाहें,कान एवं मुहं इस चक्र के क्षेत्र में आते हैं।यह चक्र व्यक्ति के बोलने की क्षमता ,स्वयं के प्रस्तुतिकरण की क्षमता,सत्यनिष्ठा,ईमानदारी तथा कहाँ बोलना और कहां नही बोलना आदि पर नियंत्रण रखता है यानि कहाँ बोलना बेहतर है और कहां सुनना उचित है यह तय करने मे मददगार होता है। विशुद्धि चक्र में आई गड़बड़ी के लक्षण:- गले की खरास,अत्यधिक बोलना ,केवल बोलते ही रहना दूसरों की नही सुनना,वाचाल होंना तथा बात बात में अपशब्दों का या भद्दे शब्द प्रयोग करने की प्रवृति या एक ही बात को बार बार दुहराने की प्रवृति जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं।विशुद्धि चक्र के अधिक सक्रिय होने के लक्षण :-जरूरत से अधिक बोलने की प्रवृति,गाली गलौज करने की प्रवृति,बिना मतलब के राय शुमारी देने की प्रवृति जैसे लक्षण विशुद्धि चक्र के अल्प सक्रिय होने के लक्षण:-लोगो से कम्युनिकेट यानि बोलचाल से परहेज करना,अपनी बातों को दूसरों से शेयर करने से बचने की प्रवृति,अपनी सही बातों को दूसरों तक न पहुँचा पाना,और अधिकतर बातों का मतलब गलत निकल जाना जैसे लक्षण मिलते हैं।
विशुद्धि चक्र से संबंधित रंग नीला होता है अतः हल्के नीले रंग लिए हुए फलों एवं सब्जियों जैसे ब्लू बेरी आदि का प्रयोग विशुद्धि चक्र को नियंत्रित रखने में मददगार होता है। लोगों के बीच जाकर स्वयं की बातों को समझाने का प्रयास करना, बोलने और सुनने के सही वक्त का निर्णय लेने की क्षमता की अभिवृद्धि करना, योग -ध्यान -साधना का अभ्यास करना साफ-साफ ‘हं’ का उच्चारण करते हुए ध्यान को केंद्रित रखना।
छठा चक्र आज्ञा चक्र या थर्ड आई चक्र भी कहलाता है यह दोनों भौं (eye brow) के थोड़ा ऊपर सिर के मध्य भाग में शंकर जी के तीसरे नेत्र वाले स्थान पर स्थित होता है यह आंखों पिट्यूटरी ग्लैंड एवं सिर के निचले हिस्से से संबंध रखता है। आज्ञा चक्र आभासी शक्ति यानी कि किसी भी घटना के घटित होने से पूर्व आभास होना, आंतरिक शक्तियों एवं क्षमताओं का विकास, स्वयं के अंदर झांक कर देखने की शक्ति का विकास आदि से संबंधित होता है आज्ञा चक्र इन सभी को बढ़ाने में मददगार होता है जो व्यक्ति को सत्य मार्ग की ओर प्रेरित करती है। आज्ञा चक्र में आई गड़बड़ी के लक्षण:-दृष्टि कमजोर होना,सिर दर्द या माइग्रेन की समस्या से पीड़ित होना,पीनियल ग्रंथि का कैल्सीफीकेशन हो जाना,नींद न आना या कम आना,दौरे पड़ने की स्थिति जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं।
आज्ञा चक्र के अधिक सक्रिय होने के लक्षण:- दिन में भी सपने देखना,किसी भी कार्य को करने में मन केंद्रित न हो पाना,अत्यधिक तनाव,दिमाग मे एक हल्केपन की अनुभूति,अत्यधिक बुद्धि का प्रयोग करने की प्रवृति का होना।
आज्ञा चक्र के अल्प सक्रिय होने के लक्षण:- आभासी शक्ति का ह्रास अपने की भीतर की शक्तियों को नही पहचान पाना, स्वयं को भीतर एवं बाहर से जोड़ने की शक्ति का भी ह्रास साथ ही अध्यात्म एवं आंतरिक क्षमताओं में कमी जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं।
आज्ञा चक्र या Third eye chakra का रंग गहरा नीला होता है अतः ऐसी रंगों से युक्त भोज्य पदार्थ का सेवन आज्ञा चक्र के लिये हितकारी होता है।
आज्ञा चक्र की क्षमताओं के विकास हेतु योग-ध्यान- साधना के साथ साथ नीले क्रिस्टल पर ध्यान केंद्रित करना एवं यौगिक क्रियाओं के साथ-साथ ॐ का उच्चारण करना लाभकारी होता है।
सातवां चक्र सहस्रार चक्र या क्राउन चक्र कहलाता है यह सिर के मध्य भाग में पिट्यूटरी -पीनियल ग्लैंड ,सेरिब्रल कोर्टेक्स ,हाइपोथैलेमस एवं सेंट्रल नर्वस सिस्टम से संबंध रखता है।
सहस्रार चक्र या क्राउन चक्र शरीर मन एवं आत्मा के बीच संबंध स्थापित रखता है जिससे समस्त प्राणी बाहरी एवं भीतरी दुनिया से जुड़े होते हैं। यह व्यक्ति के अंदर ज्ञान के प्रकाश को प्रकाशित रखते हुए,सार्वभौमिक सत्य को समझने एवं जानने की ओर प्रेरित करता है।
सहस्रार चक्र में आई गड़बड़ी के लक्षण:- सीजोफ्रेनिया,मानसिक भ्रम ,न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर,नर्वस पेन,मानसिक बीमारियों (उन्माद -अपस्मार) के लक्षण ।
सहस्रार चक्र के अधिक सक्रिय होने के लक्षण:-स्वयं को ईश्वर मानने की प्रवृति,स्वयं को केंद्रित न कर पाना,अपने अंदर अधिक केंद्रित होते हुए बाहरी दुनिया से क़ट जाना ,स्प्रिचुअल ईगो (आध्यात्मिक घमंड),स्वयं को अधिक प्रकाशवान समझने की प्रवृति जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं ।
सहस्रार चक्र यानि क्राउन चक्र के अल्प सक्रिय होने के लक्षण:-स्वयं से ही एक अलगाव की प्रवृति,सेल्फ अवेयरनेस (स्वजागरुकता) का अभाव,अपनी गलतियों के लिये दूसरों या ईश्वर को दोषी ठहराने की प्रवृति।
सहस्रार चक्र को नियंत्रित करने के उपाय:-सहस्रार चक्र का रंग गहरा पर्पल बैंगनी एवं सफेद होता है अतः भोजन में हल्के रंग युक्त पदार्थों का सेवन सहस्रार चक्र के लिये लाभकारी होता है जैसे: मशरूम,लहशुन, अदरक ,प्याज,लीची ।
सहस्रार चक्र को नियंत्रित रखने के लिये उपवास भी बेहतरीन उपक्रम है।ध्यान-साधना का नियमित अभ्यास के साथ साथ प्रचुर मात्रा में पानी पीना,ॐ या अ: का उच्चारण भी सहस्रार चक्र को नियंत्रण में रखता है।

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