“गुर्दे की देखभाल अब आसान, आयुर्वेदिक चिकित्सा दे रही है शुद्ध समाधान”

आयुर्वेदिक चिकित्सा द्वारा मूत्ररोगों का शुद्ध समाधान
आयुर्वेद शास्त्र में मूत्ररोगों और पथरी जैसे विकारों की चिकित्सा हेतु अनेक प्रभावकारी योगों का वर्णन प्राप्त होता है, जिनमें वरुणादि क्वाथ का विशेष स्थान है। यह क्वाथ चार उत्तम औषधियों—वरुण, सौंठ, गोखरु और पाषाणभेद—के समन्वित गुणों से तैयार किया गया एक संतुलित योग है, जो शरीर के मूत्र संस्थान की गहन शुद्धि और संतुलन में सहायक सिद्ध होता है।
🔍 मुख्य घटक एवं उनके गुणधर्म
🔸 वरुण (Crataeva nurvala):
मूत्राशय और मूत्रनली के विकारों में लाभकारी, वरुण मूत्र की रुकावट दूर कर पथरी को नष्ट करने में सहायता करता है।
🔸 सौंठ (Zingiber officinale):
पाचन को उत्तम करने वाली यह औषधि सूजन और संक्रमण में लाभकारी होती है, विशेषतः मूत्रमार्ग की जलन में।
🔸 गोखरु (Tribulus terrestris):
गोखरु मूत्रल प्रभाव देता है और मूत्र प्रवाह को नियंत्रित करता है। यह बलवर्धक भी माना जाता है।
🔸 पाषाणभेद (Bergenia ligulata):
जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह पथरी को भंग कर शरीर से निष्कासित करने में सक्षम है।
💡 औषधीय लाभ
✅ मूत्राशय एवं गुर्दों की गहराई से शुद्धि
✅ मूत्रमार्ग की रुकावट व जलन में राहत
✅ पथरी को भंग कर बाहर निकालने में सहायक
✅ मूत्रप्रवाह को संतुलित व नियमित करना
✅ मूत्रसंस्थान की संपूर्ण कार्यक्षमता में सुधार
🧪 सेवन विधि एवं सावधानी
वरुणादि क्वाथ को सामान्यतः प्रातः खाली पेट एवं संध्या भोजन से पूर्व गुनगुना कर सेवन किया जाता है।
📌 किन्तु यह ध्यान योग्य है कि प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति, दोष स्थिति और रोग अवस्था भिन्न होती है। अतः इस योग का सेवन केवल योग्य आयुर्वेदाचार्य के चिकित्सकीय निर्देशन में ही करें।
🕉️ सही औषधि, उचित मात्रा और समय पर ही अमृत तुल्य प्रभाव देती है।
🔔 निष्कर्ष:
वरुणादि क्वाथ आयुर्वेद का एक दिव्य योग है, जो न केवल लक्षणों से राहत देता है, बल्कि रोग की जड़ में पहुँचकर समाधान भी करता है। इसकी उपयोगिता तभी पूर्ण होती है जब इसे योग्य मार्गदर्शन में, संयमपूर्वक और श्रद्धा से ग्रहण किया जाए।
🌿 प्रकृति की शक्ति में विश्वास करें, आयुर्वेद के साथ स्वास्थ्य की ओर कदम बढ़ाएँ।
🪷 आयुष दर्पण – आपकी स्वास्थ्य यात्रा का नैतिक सहचर।