यमुनोत्री के सुदरवर्ती क्षेत्र के गांवों के ग्रामीणों को प्रशिक्षित कर रहे चिकित्सक
1 min readकिसी भी चिकित्सा विधा को कारगर और प्रभावी तब माना जाता है जब वह देश के अंतिम व्यक्ति के लिये प्रथम चॉइस बन कर उभरे ।उत्तराखंड के अधिकांश हिस्से पर्वतीय क्षेत्र हैं ऐसे में आयुर्वेद की विशेषज्ञ विद्या (मर्म एवं पँचकर्म) से रोजगार के अवसर के साथ-साथ स्वास्थ्य के संवर्धन हेतु एक अनूठी पहल उत्तराखंड के पर्यटन विकास परिषद एवं उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के संयुक्त प्रयासों से यमुनोत्री क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांवों में की जा रही है। यह देश मे पहला ऐसा प्रयास है जहां ग्रामीणों को आयुर्वेद के माध्यम से रोजगार एवं आर्थिक समुन्नति प्राप्त होगी। आयुर्वेद की विभिन्न विशिष्ट तकनीकों में से पाद अभ्यंग भी एक तकनीक है जिसे फुट मसाज भी कहा जा सकता है।यह थकान के साथ पैरों के मर्म विन्दुओ को उत्प्रेरित करती है।मई माह से चारधाम यात्रा प्रारंभ होनेवाली है ऐसे में स्थानीय युवाओं को आर्थिक रूप से रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिये उत्तराखंड का पर्यटन विकास परिषद, जिला पर्यटन विकास कार्यालय उत्तरकाशी एवं देहरादून स्थित उत्तराखंड आयुर्वेद विश्विद्यालय के सहयोग से ग्रामीणों को पैरों के अभ्यंग (मालिश) के गुर सिखाने के लिए उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुनील जोशी के निर्देशन में यमुनोत्री क्षेत्र के सुदरवर्ती गांवों में चिकित्सकों की टीम लगातार कार्य कर रही है ।उक्त टीम में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ नवीन चन्द्र जोशी ,डॉ दीप चन्द्र पांडे ,डॉ वत्सला बहुगुणा पांडे एवं डॉ नीलम सजवाण शामिल है।प्रथम दिवस के कार्यक्रम का उद्घाटन पर्यटन अपर निदेशक श्रीमती पूनम चंद ने किया।उक्त टीम ने ब्रह्मचट्टी से पैदल चलकर यमुनोत्री क्षेत्र के अंतिम गांव दुर्बिल,खरसाली,पिंडकी ,नारायणपुर, मधेश,निशनी,बाडिया ,बनास आदि के युवाओं को निःशुल्क प्रशिक्षण दिया।