स्वाद और औषधि का संगम है जख़्या
कहते हैं कि पहाड़ी दाल का मजा तब तक नहीं है जब तक की जख़्या के बीज का तड़का ना लगा हो। पहाड़ों की सभ्यता और संस्कृति लगभग एक जैसी ही है।कुमाऊं,गढ़वाल में जख़्या एवं नेपाल में हुरहुरे के बीजो से दाल में स्वाद लाने के लिए तड़का लगाने का चलन सदियों से रहा है ।यह एक महत्वपूर्ण औषधीय वनस्पति जिसे अंग्रेजी में वाइल्ड मस्टर्ड (जंगली सरसों) ,लेटिन में क्लियोम विस्कोसा
के नाम से जाना जाता है के बीज हैं।आईये जानें इस महत्वपूर्ण औषधीय जंगली पौधे के बारे में जिसके बीजो से छौंक लगा व्यञ्जनों के स्वाद को बढ़ाया जाता है :
यह जंगली सरसों या जख़्या एक ऐसी औषधीय वनस्पति है जिसके बीजों का तड़का लगाकर स्वाद बढ़ाने के साथ साथ औषधीय प्रयोग दोनों ही किये जाते हैं।इसकी 2 से 4 सेंटीमीटर लंबी और 1.5 से 2.5 सेंटीमीटर चौड़ी पत्तियां भी बड़ी ही उपयोगी होती हैं।इसमें हल्के पीलापन लिये सफेद फूल होते हैं इन्ही के भीतर बेलनाकार 2 से 5 मिलीमीटर की लंबाई एवं 1 से 1.4 मिलीमीटर की गोलाई के काले बीज भी होते हैं।पहाड़ों में लोगों को अक्सर यह कहते हुए सुना है कि “दाल में मिलनेवाली हर काली चीज बुरी नही होती कभी कभी वह जख़्या भी हो सकती है”
-इसकी पत्तियों के ताजे रस को कान में दो बूंद टपका देने मात्र से कान दर्द में लाभ मिलता है।
-पहाड़ों में दालों या व्यंजनों मे जख़्या के बीज का प्रयोग भूख को बढ़ाने के साथ साथ पेट के कीड़ों को मार देता है यानि स्वाद के साथ साथ कृमिनाशक गुण दोनों के ही मिलने के पीछे इसमे पाया जानेवाला अम्ल विस्कॉसिक एसिड 0.1% रसायन विस्कॉसिन 0.04% होता है।
-इसकी पत्तियों को पीसकर घाव एवं फोड़े -फुन्सीयों में लगाने से भी लाभ मिलता है।
-हरपीज एवं रयुमेटिज्म जैसी समस्याओं में इसकी पत्तियों का प्रयोग काउंटर इरीटेट के रूप में किया जाता है।
-पेट में मरोड़ एवं दर्द में भी यह वनस्पति काफी उपयोगी होती है।